पथ के कांटे
तेरी एक छुअन
नया साहस।
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ओस की बूंदें
हवा की शीतलता
तेरी छुअन।
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तुम्हारा आना
बेचैन करता है
तुम्हारा जाना।
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ढलती शाम
पंछी का कलरव
मेरी तन्हाई।
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गांधी की देन
दो तारीख की छुट्टी
मौज ही मौज।
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कल टंगे थे
आज खाली है फ्रेम
कहां हो गांधी।
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- बृजेश नीरज
Comment
बढ़िया लगे
आदरणीय मित्र
सारे हाइकू
सुन्दर हाइकु, बधाई स्वीकारे श्री ब्रजेश कुमार जी
आदरणीय गुरदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
किस शेर की तारीफ करूँ और किसी की नही
हर इक शेर शानदार लाजवाब .............
हर इक शेर पे दाद क़ुबूल कीजिए सर जी वाह वा वा
सुन्दर हाइकू बृजेश कुमार जी
यदि हाइकू में प्रथम और तृतीय पंक्ति सम्तुकांत हो तो हाइकू बेहद सुन्दर हो जाते हैं.वैसे यह अनिवार्य नहीं है. सादर.
ढलती शाम
पंछी का कलरव
मेरी तन्हाई।
----- saare ke saare bahut achhe likhe hai sir..
ब्रजेश जी बहुत बढ़िया हाइकु रचे हैं बहुत-बहुत बधाई |
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका आभार!
आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।
ब्रजेश जी बहुत बढ़िया हाइकु रचे हैं बहुत-बहुत बधाई |
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