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ग़ज़ल- स्कूल की घंटी

ग़ज़ल
ज़मीर इसका कभी का मर गया है
न जाने कौन है किसपर गया है |

दीवारें घर के भीतर बन गयीं हैं
सियासतदाँ सियासत कर गया है |

तरक्की का नया नारा न दो अब
खिलौनों से मेरा मन भर गया है |

कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा बंदिशों से डर गया है |

बहुत है क्रूर अपसंस्कृति का रावण
हमारे मन की सीता हर गया है |

शहर से आयी है बेटे की चिट्ठी
कलेजा माँ का फिर से तर गया है |

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Comment by Abhinav Arun on November 29, 2010 at 3:59pm
शेष जी और बागी जी स्नेह का आभार | aaap सब की kasauti पर khara utroon yahee प्रयास rahega |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2010 at 9:17pm
अरुण भाई दिल निकाल कर आपने ग़ज़ल बना दिया है , बेहद खुबसूरत |
मकता मे आपने तो कमाल कर दिया है , बहुत खूब , बधाई |
Comment by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 2:18pm
अहा आशीष जी सही कहा आपने दरअसल कमी ग़ज़लों की नहीं इस नेट और डायरी के बीच के सामंजस्य का है | मैंने दोनों ग़ज़लों के शीर्षक अलग अलग देखकर समझा ki इसे पोस्ट नही किया है |आपने ध्यान दिलाया और मेरी ग़ज़ल को याद रखा ये बड़ी बात है अब मेरी उम्र हो रही है और याददाश्त कमज़ोर | आप आगे भी अवश्य ध्यान दिलाते रहिएगा आग्रह है |अब डायरी और नोट पैड में निशान लगाते जाऊंगा ताकि पुनरावृति न हो | पुनः धन्यवाद |
Comment by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 2:14pm
babban ji ,Rector Kathuria ji ,विवेक जी naveen ji , आशीष जी ,और ताहिर जी ग़ज़ल की तारीफ़ का शुक्रिया !
Comment by आशीष यादव on November 15, 2010 at 7:42am
I m very very sorry ki galti se navin ji naam likh diya tha, likhna tha arun ji ka. maine delete kar diya hai.
Comment by baban pandey on November 14, 2010 at 10:39am
बहुत खूब पाण्डेय भाई ...
Comment by Rector Kathuria on November 14, 2010 at 9:38am
पण्डे जी बहुत ही अच्छी रचना
आप की यह रचना बहुत से कटु सत्यों की याद दिलाती है..
और वो भी बहुत ही सादगी से
बहुत ही अर्थपूर्ण रचना...बधाई हो...!
Comment by विवेक मिश्र on November 13, 2010 at 11:36pm
sahi kaha aashish ji.. maine bhi abhinav ji ki ye ghazal pahle padhi thi. par padhne ke baad, ek baar fir se taazgi aa gayi.
Comment by Abhinav Arun on November 13, 2010 at 3:00pm
राणा जी तरही की कमी सभी महसूस कर रहे हैं आप कब ला रहे हैं? ये गज़ल आपने सराही धन्यवाद ,हौसला मिलता है जब आप जैसे मंजे हुए शायर तारीफ़ करते हैं |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 13, 2010 at 2:01pm
अभिनव भाई बहुत सुन्दर ग़ज़ल

कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा बंदिशों से डर गया है |

बहुत है क्रूर अपसंस्कृति का रावण
हमारे मन की सीता हर गया है |
बेमिसाल ख्यालों के लिए बधाइयाँ|

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