!!! मासूम सा बच्चा !!!
जाति-पाति और औकात नहीं!
माँ से बिछड़ा-बाप से बिछड़ा
जन-समाज ने पुचकारा नहीं !
दुनिया देख रहा अब बच्चा !
हिन्दू न मुस्लिम बिलकुल सच्चा!
जिसको देखता उसको लुभाता,
लगता जैसे अपना बच्चा !
मंदिर का घंटा ज्यो बजता,
दौड़ चहेक कर आता बच्चा !
मस्जिद की आजान को सुनकर,
रोज फूक डलवाता बच्चा!
हरी शर्ट-केसरिया नेकर,
नंगे पैर ठुमकता बच्चा !
मंदिर का प्रसाद और हलुवा,
गुरूद्वारे में लंगर चखता !
मस्जिद की मिलाद में जाकर,
बूंदी-मीठा शरबत पीता !
बड़ा उमंग-आनंद-उल्लास,
भारत की शान - भारत का बच्चा !
जहाँ किसी ने मारा चाकू
और किसी ने बम को फोड़ा !
मस्जिद के दर सोये बच्चे को
उठा कर फेका मंदिर चौखट पर !
मंदिर पर पड़ा ज्यो डंडा
भाग गया वह गुरूद्वारे पर !
यहाँ चम-चम चमकती तलवारें
काँप गयी रूह बच्चे की !
अब कहाँ भागे, न मिले ठिकाना
यह बच्चे का है बचकाना !
यह कैसा माहौल हो गया,
बच्चा अब बेहोश हो गया !
सुबह हुयी तो भीड़ बढ़ी थी,
खामोश बच्चे की लाश पड़ी थी!
यह कैसा इन्सान है यारो !
पत्थर मारो ! पत्थर मारो !!
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सच्ची बात! हर कोई को भाए बच्चा!
मासूम बच्चे पर केन्द्रित सुन्दर अभिव्यक्ति |
आदरणीय, प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी, आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार एवं धन्यवाद। सादर,
आदरणीय, श्री आशोक कुमार रक्ताले जी, आपने बिलकुल सही फरमाया, हां ऐसे लोग हैं जिन्हे एकता और सौहार्द नही सुहाता औ वे ही समाज में नफरत फैलाते हैं। आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार एवं धन्यवाद। सादर,
आदरणीय केवल प्रसाद जी सुन्दर रचना
आदरणीय केवल प्रसाद जी सुन्दर रचना. समाज में ऐसे तत्व भी होते हैं जिन्हें आपसी सौहार्द जाने क्यों खटकता है.
आदरणीय, राजेश कुमार झा जी, प्रिय मित्र! आपका प्रश्न बहुत अच्छा है। बात केवल बच्चे की ही नही बल्कि पूरे समाज और मानवता की है। ‘मासूम बच्चा’ एक निरीह प्राणी, निर्दोष जनता और इंसानियत का बिम्ब है। ऐसा मान कर ही मैंने यह रचना की थी। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
मुझे ठीक से समझ नहीं आई रचना, यह मासूम बच्चा किसका प्रतीक है स्पष्ट करें तो सुविधा होगी
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