For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तू  मुझमें  बहती  रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं    उन्मादी   मूढ़वत,   रहा  ढूँढता  संग

सहज हुआ अद्वैत पल,  लहर  पाट  आबद्ध
एकाकीपन साँझ का, नभ-तन-घन पर मुग्ध

होंठ पुलक जब छू रहे,   रतनारे   दृग-कोर
उसको उससे ले गयी,  हाथ पकड़ कर भोर

अंग-अंग  मोती  सजल,  मेरे तन पुखराज
आभूषण बन  छेड़ दें, मिल रुनगुन के साज

संयम त्यागा स्वार्थवश,  अब  दीखे  लाचार
उग्र  हुई  चेतावनी,  बूझ  नियति  व्यवहार

*******************************

--सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1893

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shashi purwar on July 1, 2013 at 3:43pm

bahut sundar dohe saurabh ji shabdo ke moti bahut lubhavne lage hardik badhai aapko


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 5:04pm

प्रस्तुत दोहा-छंद रचनाओं पर उदार प्रतिक्रिया के लिए सुधीजनों और सुधीपाठकों का हार्दिक आभार

सादर

Comment by MAHIMA SHREE on June 25, 2013 at 11:20pm

अति सुंदर दोहें .. आदरणीय सौरभ सर . शब्द जैसे माला में मोती की तरह बंधे हुए .. आकर्षित कर रहे हैं बहुत-२ बधाई आपका ..सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 25, 2013 at 10:29pm

आ0 गुरूवर सौरभ सर जी,  ...अतिसुन्दर...अद्भुत ..अप्रतिम दोहे ।  तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2013 at 7:18pm

आदरणीय गुरू जी, बड़े ही गूढ़ अर्थों मे पगी पंक्तियाँ हैं साझा करने के लिये आभार .

Comment by रविकर on June 25, 2013 at 3:56pm

सुन्दर दोहे

आभार आदरणीय-

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 25, 2013 at 3:54pm

 इतने सुन्दर अन्तरंग दोहे मैंने शायद पहले कभी नही पढ़े | अंतर्मन के   

अन्तः प्रेरित सुन्दर भावो से रचित दोहे की प्रशंसा हेतु शब्द नहीं है | ढेरों बधाई

आदरणीय श्री सौरभ जी | सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 25, 2013 at 3:25pm

तू  मुझमें  बहती  रही, लिये धरा-नभ-रंग 
मैं    उन्मादी   मूढ़वत,   रहा  ढूँढता  संग

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी 

सादर 

भाव पूर्ण दोहे  . साझा करने हेतु आभार 

Comment by vijay nikore on June 25, 2013 at 10:57am

आदरणीय सौरभ भाई:

कई दिन हुए मैंने इन सुन्दर दोहों पर प्रतिकिया लिखी थी,

परन्तु वह अब यहाँ न जाने क्यूँ दिख नहीं रही। हो सकता है,

मुझसे कोई गलत बटन दब गया हो।

 

यथार्थ को स्पष्ट करते इन अप्रतिम दोहों के लिए शत-शत बधाई।

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2013 at 11:28pm

सभी सुधीजनों को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद कह रहा हूँ.

आप सभी ने प्रस्तुति को मान दे कर मेरा उत्साह बढाया है.   सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service