गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार
डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया प्राची दी अनेक अनेक धन्यवाद आपका अनुमोदन पाकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है, यह सब आप सभी के सहयोग के कारण संभव हो सका है. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
आदरणीया राजेश कुमारी जी हार्दिक आभार आपका आपको प्रयास सुन्दर लगा प्रयास सफल हुआ आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय अशोक सर जी हार्दिक आभार आपका आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
आल्हा छंद पर बहुत सुन्दर प्रयास
सामायिक कथ्य और भाव बहुत संतुलित और प्रवाहमय लगे.
हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर
प्रिय अरुन बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है प्रस्तुति और भाव दोनों के लिए बधाई एवं शुभकामनायें
वाह! बहुत सुन्दर भाई अरुण शर्मा जी बहुत सुन्दर वीर छंद रचे हैं. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. इस त्रासदी के लिए सभी प्राणी नहीं सिर्फ मानव को ही दोष दें तो बेहतर होगा. "आभासित"
आदरणीया वेदिका जी भावुकता अपनी जगह और व्याकरण अपनी जगह, आदरणीया एक लेखक भावों के साथ साथ व्याकरण पर भी उतना ध्यान देता है इस हेतु आप अपनी जगह बिलकुल ठीक हैं कृपया शर्मिंदा न हों. सादर
छंद बहुत अच्छा है आदरणीय अरुण जी!
मै तो बस छंद पढ़ते पढ़ते ही भावुक हो गयी, और शर्मिंदा हो उठी की मै भाव के बजाये व्याकरण को देख रही हूँ ।बस
हार्दिक आभार आदरणीय केवल प्रसाद जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
आदरणीया गीतिका जी हार्दिक आभार आपका यह छंद स्वतः शीघ्र और बिना श्रम के बन गया और उसी समय अपने परिवार के साथ साझा कर लिया, भविष्य में ध्यान रखूँगा.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online