For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कजरे  गजरे  झाँझर  झूमर  ,  चूनर  ने   उकसाया था
हार  गले  के  टूट  गये  सब  ,  ऐसा  प्यार  जताया था


हरी चूड़ियाँ  टूट  गईं , क्यों  सुबह-सुबह  तुम रूठ गईं
कल शब  तुमने ही  तो मुझको , अपने पास बुलाया था


जितनी करवट उतनी सलवट, इस पर  काहे का झगड़ा
रेशम की  चादर  को  बोलो , किसने  यहाँ  बिछाया था


हाथों की  मेंहदी  ना बिगड़ी  और  महावर ज्यों की त्यों
होठों  की  लाली  को  तुमने , खुद  ही  कहाँ  बचाया था


झूठ  कहूँ  तो  कौवा  काटे   ,   मैंने   दिया  जलाया था
खता  तुम्हारी  थी जो तुमने , खुद ही दिया बुझाया था


नई  चूड़ियाँ  ले  लेना   तुम  ,  हार  नया  बनवा  लेना
अभी - अभी  तो  पिछले  हफ्ते  ही  इनको बनवाया था ||


(मौलिक एवम् अप्रकाशित)


अरुण कुमार निगम

Views: 933

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 7:32pm

आदरणीय वाह! लाजवाब रचना है यह तो! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 7:29pm

आदरणीय अरुण भाईजी,  जय हो...  :-)))

इस ऊमस भरे मौसम में उभ-चुभ हुए मनस को आपने क्या सरस फुहार का झोंका मारा है !
कहते हैं न लोहा लोहे को काटता है. सर्वोपरि, रचना प्रतिपद अपने भोले प्रश्नों से बार-बार मानों चिकोटी काट-काट मुदित करती है. आर्द्र मौसम में पसीने का माहौल कमाल कर रहा है.

बधाई स्वीकारें प्रभु इस मनसायन रचना पर !!
 

 
शिल्प की दृष्टि से आपने 16-14 की यति पर 30 मात्रिक छंद-रचना की है. लेकिन स्वरूप रखा है द्विपदी का !!

दो पदों को छोड़ दें तो अन्य पद तुकांतता की दृष्टि से तो नहीं किन्तु मात्रिकता की दृष्टि से ताटंक छंद का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं.

इस प्रस्तुति को लावणी के निकट अधिक पाता हूँ. जहाँ पदांत मगण (222) की अनिवार्यता नहीं होती. लावणी महाराष्ट्र में अति लोकप्रिया नृत्य-गायन विधा है.

जय-जय

Comment by vijay nikore on July 17, 2013 at 1:33pm

सुन्दर कोमल भावों से भरपूर रचना के लिए बधाई, आदरणीय अरुण जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by ganesh lohani on July 16, 2013 at 4:46pm

आदरणीय श्री अरुण जी प्रणाम , बहुत सुंदर रचना | प्रेम और सृंगार का मधुर मिलन| डर रूठने का पूर्वानुमान पर विनती|

"नई चूड़ियाँ ले लेना तुम , हार नया बनवा लेना" अभी - अभी  तो  पिछले  हफ्ते  ही  इनको बनवाया था ||
श्रावण की तीज भी तो आने वाली है, दो हफ्ते बाद ही सही खरीददारी एक साथ हो जाएगी |

Comment by वेदिका on July 16, 2013 at 2:17pm

श्रंगार रस की ये रचना तो बहुत कमाल बन पड़ी है!!
बड़ी ही प्रिय प्रेम दशा का चित्रण!!
बधाई स्वीकारें!!


फिर फिर बांहों में लेने का, अच्छा एक बहाना था
फिर फिर पुचकारा था मुझको फिर फिर मुझे रुलाया था,,,   

Comment by Savitri Rathore on July 16, 2013 at 2:01pm

सुन्दर एवं सुकोमल भावों से युक्त श्रृंगार - वर्णन .......बधाई हो।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 1:02pm

वाह वाह आदरणीय क्या श्रन्गार पिरोया है आपने वाह वा

घूर रहे हो गुस्से में वो प्यार हमारा भूल गये
रात अभी बीते कल की जब माथा चूम सुलाया था

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 15, 2013 at 11:17pm

आदरणीय अरुण निगम साहब सादर, सुन्दर प्यार भरी रचना सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 15, 2013 at 10:46pm

झूठ  कहूँ  तो  कौवा  काटे   ,   मैंने   दिया  जलाया था
खता  तुम्हारी  थी जो तुमने , खुद ही दिया बुझाया था

वाह ! बहुत सुन्दर गीत पढ़ कर आनंद आ गया, हार्दिक बधाई श्री अरुण कमार निघं जी 

झूट बोलू कौवा काटे,मैंने दिया जलाया था 

दीप बुझा देने का भी,भान मुझे कराया था 

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on July 15, 2013 at 8:32pm

झूठ  कहूँ  तो  कौवा  काटे   ,   मैंने   दिया  जलाया था
खता  तुम्हारी  थी जो तुमने , खुद ही दिया बुझाया था


नई  चूड़ियाँ  ले  लेना   तुम  ,  हार  नया  बनवा  लेना
अभी - अभी  तो  पिछले  हफ्ते  ही  इनको बनवाया था ||

बहुत सरस अति सुन्दर .........................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service