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एक से बढ़ कर एक शेअर रचे हैं आदरणीय अरुण भाई जी, किसी एक शेअर की तारीफ करना बकिया अशआर के साथ बेइंसाफी होगी. इस मुकम्मिल कमाल के लिए मेरी दिली दाद हाज़िर है, कबूल फरमाएं.
आदरणीय अभिनव जी, आपकी इस ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए मेरे पास अल्फ़ाज़ नही हैं, क्या कहूँ बेहतरीन ग़ज़ल आपकी, एक एक शेर असरदार बन पड़ा है, तारीफ़ क़ुबूल फरमाएँ,
क्यों करें बर्दाश्त बादल, आखिरश वो फट पड़े
हम हदों को लांघते थे मौज पाने के लिए ।
ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए ।
वाह वाह वाह
इन दो अशार ने क्या हामी ली है ! बधाई अभिनव अरुण भाई, बहुत बहुत बधाई.
मतला भी पुरअसर है.
अन्य अशार पर थोड़ा और समय देते तो तथ्य ही नहीं तब उनका कथ्य भी बेहतर होता.
कहना न होगा सभी अशार ख़याल से हमेशा की तरह बहुत ऊँचे हैं. देखिये न, मेसेज को मेसज कर दिया होता ! इसके से को गिराना कितना मुआफ़िक होगा, यह देखने की बात है.
बहरहाल, बधाई स्वीकार करें, भाईजी.
"अब खबर में खेल में और ख़्वाब में बन्दूक हैं,
कौन आगे आएगा बचपन बचाने के लिए ।" आज के हालातों को, ख़ूबसूरती से उकेरने वाली गजल. बहुत बहुत बधाई.
पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए ।
क्यों करें बर्दाश्त बादल, आखिरश वो फट पड़े
हम हदों को लांघते थे मौज पाने के लिए । बहुत खूब आदरणीय अभिनव जी हर एक शेर एक से बढ़ कर एक है बधाई स्वीकार करें /
फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।
ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए ।
पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए ।.. वाह वाह !!!
उन फिराकों साहिरों फैजों ने हमको सीख दी ,
एक शाइर शाइरी करता ज़माने के लिए ।.. क्या कहने, वाह !!
फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।... बड़ा समसामयिक शेर बन पड़ा है |
बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय !!
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