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कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा ….…

August 8, 2013 at 2:33am

है बहुत मजबूर वो जमाने से भागता होगा 

नींद की ख्वाहिश में रात भर जागता होगा। 

 

रौशनी के चंद कतरे रखे थे अँधेरों से छुपा

क्या पता था कोई दरारों से झाँकता होगा। 

 

जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम

ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा। 

 

आज समझा अहले दौराँ की तिज़ारत देखकर 

शैतान भी इन्साँ से अब पनाहें माँगता होगा।

 

घटा घनघोर घिरती है गरजती है बरसती है 

कहर की बिजलियों से कौन जाने राब्ता होगा।

 

रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही 

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।  

 

-ललित मोहन पन्त 

2. 27 रात 

8. 8 .2013    

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 850

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2013 at 8:43am

//यूँ भी व्यस्त चिकित्सकीय  जीवन में देर रात ही वक़्त मिल पाता  है   …मैं  जानता हूँ यह बहाना क्षम्य नहीं है  //

आप ही की दशा हममें से अधिकांश सदस्यों की है.

आपने सही कहा, आदरणीय, विधान के प्रति अन्यमनस्कता क्षम्य नहीं है. किन्तु, यह आपकी असीम उदारता ही है कि आप अपनी व्यस्तता को ’बहाना’ कह रहे हैं. यह आपकी लगन को ही दर्शाता है.

सादर

Comment by dr lalit mohan pant on August 14, 2013 at 2:45am

आदरणीय Saurabh Pandeyजी आपकी सलाह और प्रतिक्रिया का मैं ह्रदय से आभारी हूँ  … प्रयास करता हूँ  … विधान की सीमाओं में सृजन जब किंचित समझने लगा हूँ आसान नहीं लगता  …यूँ भी व्यस्त चिकित्सकीय  जीवन में देर रात ही वक़्त मिल पाता  है   …मैं  जानता हूँ यह बहाना क्षम्य नहीं है  ….  आप जैसे मार्गदर्शक मुझे दिशा देते रहेंगे तो एक दिन मेरे सृजन को विधान भी मिल जायेगा  … आभार   …. इसी तरह स्नेह से उपकृत करते रहेंगे   …. 

इसी तरह स्नेह बनाये रखेंगे 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2013 at 11:58pm

आपकी रचना की भाव-दशा सार्थक है.  प्रयास करें कि इस गेयता को विधान मिल जाये. यही प्रयास आपके अंतर के कवि को भी संतुष्ट करेगा.

सादर

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 10:46am
रौशनी के चंद कतरे रखे थे अँधेरों से छुपा

क्या पता था कोई दरारों से झाँकता होगा।
बहुत ही सुन्दर बहुत ही
और बहुत ही गहरा ......

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2013 at 12:40pm
सुन्दर ग़ज़ल , वाह क्या बात है !!
Comment by राज़ नवादवी on August 10, 2013 at 12:39pm

अच्छी ग़ज़ल है, एकाध शेर को छोड़कर बाकी के मजमून अच्छे हैं, 

जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम

ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा। 

रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही 

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।  

मतला भी खूबसूरत है! 

Comment by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 4:27pm

जीवन की सच्चाई...,,, शब्द बहुत सुन्दर पिरोया आपने....

रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही 

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।  

  ये पंक्तियाँ निशब्द करती गयीं

Comment by विजय मिश्र on August 9, 2013 at 2:27pm
"आज समझा अहले दौराँ की तिज़ारत देखकर
शैतान भी इन्साँ से अब पनाहें माँगता होगा। " - बेशक एक तल्ख और मुद्दे पर तवज्जो की मिन्नत करती खूबसूरत गजल .लिखने का मजा तभी है जब मौजूँ जिन्दा हो . मुबारक पंतजी ,
Comment by annapurna bajpai on August 8, 2013 at 11:43pm

वाह वाह सुंदर रचना बधाई स्वीकारे आदरणीय पंत जी ।

Comment by shubhra sharma on August 8, 2013 at 10:25pm

आदरणीय पन्त जी सुंदर रचना केलिए   बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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