एक
चाँद झाँका
बादलों की ओट से ,
चाँदनी चुपके से आ
खिड़की के रस्ते,
बिछ गई बिस्तर पे मेरे/
और
हवा का एक झोंका,
सोंधी सी खुश्बू लिए
छू कर गया गालों को मेरे /
यूँ लगा मुझको कि
तुम सोई हो मेरे पास ,
मेरी बाहों के घेरे में /
लेकर होठों पर
एक इंद्रधनुषी मुस्कुराहट
तृप्त |
दो
सपने, तान्या
एक दम छोटे से बच्चे
जैसे होते हैं/
अपने मे खोए से /
जाने क्या सोचते रहते हैं/
फिर हौले से मुस्कुरा देते हैं/
फिर कुछ गुनगुनाने लगते हैं/
फिर गाने लगते हैं/
फिर नाचने लगते हैं/
फिर चकित हो जाते हैं/
फिर खामोश हो जाते हैं/
फिर उदास हो जाते हैं/
फिर सुबकने लगते हैं/
फिर दर्द की भाप मे बदल जाते हैं/
ओर दिल से उठ कर
आँखों की कोरों पर आ के
बैठ जाते हैं/
ओर खोई खोई आँखों से
अपनी तान्या को खोजने लगते हैं/
फिर उन्ही गालों पर
बहने लगते हैं
जिन्हे तुम ने चूमा था/
भीगे भीगे इस मौसम मे/
ऐसा ही एक सपना
मेरे दिल से उठ कर /
मेरी आँखों की कोरों पर
आ बैठा है/
ओर खोज रहा है तुम्हे |
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविंद भटनागर ' शेखर'
Comment
वाह भाई वाह.. . शुद्ध सात्विक समृद्ध सनातन भाव-दशा की सुन्दर अभिव्यक्ति !
बहुत बहुत बधाई हो .. .
सुंदर .. विरह के क्षणों को कोमल एहसासों से पिरोती सपनो की रंगबिरंगी दुनिया दिखलाती ..बहुत खूब .. बधाई आपको
नर्म अहसासों वाली बड़ी सुंदर कविता रची है आपने, सादर
सुन्दर भावाभिव्यक्ति .... बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आ0 अरविन्द भाई जी, अतिसुन्दर सरस रचना। हृदयतल से हार्दिक बधाई। सादर,
अच्छा है! हार्दिक बधाई आपको!
अरविंद भाई , अति सुदर , वाह !!
ऐसा ही एक सपना
मेरे दिल से उठ कर /
मेरी आँखों की कोरों पर
आ बैठा है/
ओर खोज रहा है तुम्हे | बहुत अच्छे !! बधाई !!
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें................
दोनों ही कवितायेँ बहुत अच्छी लगी बधाई आपको बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
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