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जादू  टोने टोटके,  फैले पाँव पसार,
श्याणे भौपे कर रहे,जिस्मों का व्यापार । 
 
झांड़-फूक के आड़ में, करते रहे शिकार,
धर्म जगत बदनाम हो,यह कैसा व्यापार । 
 
परम्परा के नाम पर, बढे अंध-विश्वास,
तत्व-बोध जाने बिना, क्यो कर रहे प्रयास । 
 
ड़ायन कहकर दागते, जीना करे हराम,
पागल कहकर साधते, तांत्रिक अपना काम । 
 
पाने की हो लालसा, बढ़ता जावे लोभ,
भाग्य भरोसे बैठकर, जब तब करते क्षोभ । 
 
बिल्ली काटे राह तो, नहीं समय प्रतिकूल,
समय न टाले काम का,सभी समय अनुकूल । 
 
कुत्ता  रोये रात को, अशुभ नहीं संकेत,
उसका दुःख जाने नहीं, खुद को करे सचेत । 
 
बिना तथ्य अरु तर्क के, गढ़े अंध-विश्वास,
अंध-श्रद्धा ठीक नहीं, समुचित होय विनाश । 
 
ढोंग और पाखण्ड से, पाए बिना निजात,
करे न काम विवेक से, करे भाग्य की बात ।
मौलिक व् अप्रकाशित 
 
 -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

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Comment by रमेश कुमार चौहान on September 2, 2013 at 10:09pm

बहुत ही सुंदर दोहे बधाई बधाई

Comment by ram shiromani pathak on September 2, 2013 at 7:52pm

सुन्दर दोहे रचे हैं अपने आदरणीय लक्ष्मन जी //हार्दिक बधाई 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 2, 2013 at 7:22pm

वाह-वाह आदरणीय आपने तो दिल लूट लिया, बहुत ही बढि़या, सादर

Comment by रविकर on September 2, 2013 at 10:17am

सटीक सटीक सटीक-
सटाक सटाक सटाक-


आभार आदरणीय अग्रज-

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 2, 2013 at 9:34am

दोहे  पसंद कर सराहने  के लिए आपका हार्दिक आभार श्री केवल प्रसाद  जी ।  सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 2, 2013 at 9:13am

दोहे  पसंद कर सराहने  के लिए आपका हार्दिक आभार श्री धर्मेन्द्र सिंह जी ।  सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 2, 2013 at 9:08am

दोहे सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार विनीता शुक्ला जी, सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 1, 2013 at 10:11pm

आ0 लड़ीवाला सर जी, समसामयिक, बहुत ही सुन्दर दोहे। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 1, 2013 at 9:57pm

बहुत अच्छे दोहे हैं लड़ीवाला जी, दाद कुबुल करें

Comment by Vinita Shukla on September 1, 2013 at 9:35pm

अंधश्रद्धा पर सटीक प्रहार करने वाले दोहे. कोटिशः बधाई आदरणीय.

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