जवान होते ही हैं
शहीद होने के लिए
और नेता
वह तो शासक है
सोना उनका हक है
जवान जब गोली खा रहा होता है
नेता पार्टी कर रहे होते हैं
जवानों की चिता को
मुखाग्नि भी
राजनीति का अवसर देती है
उन्हें,
शहीदों की
माओं के चाक सीने पर भी
नमक छिड़कने से भी
बाज नही आते
विलाप, क्रंदन भी
अवसर हैं वोट की तिजारत के।
नेताओं
देश शर्मसार है तुम पर।
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
तीखे व्यंग्य से ओत प्रोत आप की कविता आज की सामाजिक , राजनीतिक पर करारी चोट है.
जवान होते ही हैं
शहीद होने के लिए
और नेता
वह तो शासक है.......सादर /कुंती.
आपकी संवेदना और इस रचनाकर्म के प्रति साधुवाद.
एक बात :
सम्बोधन के रूप में प्रयुक्त संज्ञाओं के अंतिम ओकार में अनुस्वार नहीं होता.
सादर
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति आदरणीय मीना जी
जवानों की शहादत पर वोटों की राजनीति करने वाले नेताओं पर देश ही नहीं इंसानियत भी शर्मसार है
ह्रदय में शूल से चुभती ऐसी सच्चाइयों के प्रति पाठकों को चेताना लेखन की सार्थकता है.
इस सार्थक प्रस्तुति के लिए साधुवाद!
बहुत ही सुन्दर रचना आपकी आदरणीया
ह्रदय से बधाई स्वीकारें
देश अगर शर्मसार होता तो राजनीति से गंदगी ही साफ़ हो जाती, ५ साल हम गलियाते हैं और फिर नाकाबिलों और बाहुबलियों को वोट दे के आते हैं, क्योंकि वो हमारे धर्म के होते हैं, वो हमारी जाति के होते हैं और क्योंकि उनसे हमें कही न कही व्यक्तिगत फायदा होने की उम्मीद होती है ।
हम सुधर जाएँ तो उनको तो कुत्ता भी न पूछे ।
सुन्दर और भावप्रधान रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीया मीना पाठक जी ।
बहुत सहीह चित्रण किया आपने आ. Meena Pathak जी। भावुक हो गया। बधाई स्वीकार करें।
इसे सिलसिले में जनाब मुनव्वर राना का एक शेअर याद आ रहा है, सुनाने का मन कर रहा है—
सिपाही मोर्चे से उम्र भर पीछे नहीं हटता
सियासतदां जुबां देकर बआसानी पलटता है
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