क्यों रे दीपक
क्यों जलता है,
क्या तुझमें
सपना पलता है...?!
हम भी तो
जलते हैं नित-नित
हम भी तो
गलते हैं नित-नित,
पर तू क्यों रोशन रहता है...?!
हममें भी
श्वासों की बाती
प्राणों को
पीती है जाती,
क्या तुझमें जीवन रहता है...?!
तू जलता
तो उत्सव होता
हम जलते
तो मातम होता,
इतना अंतर क्यों रहता है...?!
तेरे दम
से दीवाली हो
तेरे दम
से खुशहाली हो,
फिर भी तू चुप - चुप रहता है...?!
चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है...!!
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- विशाल चर्चित
Comment
खूबसूरत नवगीत
आपकी रचना निस्संदेह सुंदर है, स्पष्ट है । चूंकि गीत पर मैं भी हाथ आजमाता रहता हूं अत: प्रत्येक बंद का अंत प्रश्न से हो जैसा
कि अधोलिखित पंक्तियों में हो तो मुझे लगता है यह और सुंदर हो सके्गा, कृपया विचार करें,
हम भी तो
जलते हैं नित-नित
हम भी तो
गलते हैं नित-नित,
पर तू क्यों रोशन रहता है...
आदरणीय विशाल जी, बार बार पढ़ रहा हूँ इन अद्भुत पंक्तियों को....एक सुझाव अंतिम पंक्ति में " मन कुछ ऐसा ही करता है" के स्थान पर 'मन कुछ ऐसा ही कहता है' ----कैसा लगेगा?
सादर
प्रदीप भाई जी...... आपका हृदय से आभारी हूं कि आपने अत्यन्त सूक्ष्म छिद्रान्वेषण किया..... एक पाठक के रूप में आपने अपना दायित्व निभाया.... अब एक कवि के रूप में मेरा दायित्व है कि अपना पक्ष रखूं..... आप अगर ध्यान से देखें तो पायेंगे कि हर अंतरे में दीपक से बात हो रही है.... अलग - अलग मुद्दों पर..... आखिरी अंतरे में भी यही हुआ है.... दीपक से ही ये कामना - ये सदिच्छा प्रकट की गयी है कि -
चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है...
चूकि ये एक उत्सव का मामला है दीवाली का मामला है तो..... एक सदिच्छा - एक शुभकामना मुझे यहां नितांत आवश्यक लगी..... !!!!
वंदना जी आभार !!!!
बहुत - बहुत शुक्रिया सुशील भाई !!!!
विजय सर जी आभार !!!
waah .. bahut sundar ... behad khoobsoorat vichaar aur vivechna ... ek baat kahunga, antare ki antim pankti, us antare ki shesh panktiyon ke bhaav se kahin kahin bhinn lagi mujhe ... aisa meri samjh ke anusaar hua, main galat bhi ho sakta hoon
खूबसूरत नवगीत
तेरे दम
से दीवाली हो
तेरे दम
से खुशहाली हो,
फिर भी तू चुप - चुप रहता है......... वाह वाह.......
चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है......... अति उत्तम.......... सुंदर भावों से सुसज्जित एवं अंत में एक चाह लिए हुए इस सुंदर नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई हो आ0 विशाल भाई....
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