मात्रा भार - 222 ,222 ,22
खोल शिखा फिर आन करें हम
आज गरल का पान करें हम।
ज्वालाओं के धनुष बना कर
लपटों का संधान करें हम।
अंगारों सा धधक रहा उस
यौवन पर अभिमान करें हम।
अँधियारा जब छा जाये तो
खुद को ही दिनमान करें हम।
समिधाओं से राख उड़ी है
आहुति का आह्वान करें हम।
अपना कौन पराया कितना
अब उनकी पहिचान करें हम।
कर कौन रहा कल की चिंता
कल का भी कुछ ध्यान करें हम।
-ललित मोहन पंत
0021 रात
30. 10 . 13
"मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति हेतु बधाई आ0 पंत जी....
आ ० वीनस केसरी जी आपकी प्रशंसा से दिवाली मन गई … धन्यवाद।
सुन्दर भाव पूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें
सादर
घर में बालक को संस्कृत भाषा, वेद, पुराण आदि के अध्ययन, पूजा-पाठ, संध्या-वंदन तथा धार्मिक कर्मकाण्ड का वातावरण मिला और मेधावी चन्द्रधर .... वह युग-सन्धि पर खड़े एक विवेकी मानस का और उस युग की मानसिकता का भी प्रामाणिक दस्तावेज़ है। ... गुलेरी जी सबसे मन की संकीर्णता त्यागकर उस भव्य कर्मक्षेत्र में आने का आह्वान करते हैं जहाँ सामाजिक जाति भेद नहीं, मानसिक ...
और अंतिम दस्तावेज़ में ... के विनाशकारी प्रभावों की रोशनी में देशों से अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून का पालन करने का आह्वान किया।
संसार भर में रासायनिक अस्त्र नष्ट करने का आह्वान ...
आदरणीय बृजेश नीरज जी इस बह्र में यह छूट दी हुई है २ को ११ या २२ को १२१ किया जा सकता है, बस पढने में अटकाव नहीं होना चाहिए, जैसा कि इस मिसरे में हो रहा है
"कर कौन रहा कल की चिंता "
आह्वान का अर्थ हिंखोज कुछ यह बताता है
Meaning of आह्वान in Hindi:
पुं० [सं० आ√व्हे+ल्युट्] १. किसी से यह कहना कि यहाँ या हमारे पास अमुक काम के लिए आओ। पुकारना। बुलाना। २. पूजन, यज्ञ आदि के समय देवताओं से यह कहना कि आप यहाँ आकर अपना भाग और हमारी सेवा-पूजा ग्रहण करें। ३. आधिकारिक या विधिक रूप से किसी को आज्ञा देना कि यहाँ आओ। ४. वह पत्र जिसमें उक्त प्रकार का बुलावा लिखा हो। (समन)
वैसे सही शब्द क्या है आह्वान या आवाहन , मुझे भी जानना है
आपके इस कहन पर आपको हार्दिक बधाई!
सच कहूं तो आपका प्रयोग गले के नीचे नहीं उतरा. अगर २ को ११ ही लिखना है तो बहर उसी तरह की क्यूँ न ली जाए?
//अंगारों सा धधक रहा उस//
मेरे हिसाब से तो इस पंक्ति की बहार ये होनी चाहिए- २२२ २ १२ १२ २
//आह्वान// इस शब्द का मतलब क्या होता है?
भाई जी मैं ग़ज़ल ठीक नहीं जानता इसलिए मेरी शंकाओं का समाधान करने का कष्ट करें.
सादर!
आपकी विज्ञ प्रतिक्रियाओं का आभार आo गिरिराज भंडारी जी राजेश 'मृदु' जी
गले के नीचे उतारा नहीं कि ऐसी अटकी कि ना निगल पाया ना उगल पाया, जब समिधा से भी राख उड़े और श्मशानों से भी तो शायद ऐसा ही होता है, सादर
आदरणीय ललित भाई , कहीं दूर का एक रास्ता दिखाती आपकी ये गज़ल बहुत अच्छी लगी !!!!! आपको हार्दिक बधाई !!!!
सुंदर गज़ल , बधाई ललित मोहन भाई।
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