उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम है
ये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम है
जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है
मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है
मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो
'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'
देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए
जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है
कुछ तो अनबन है ज़रूर उसकी, खुदा से 'राणा'
आज सजदे में झुकी उसकी ज़बीं कुछ कम है
मौलिक तथा अप्रकाशित
Comment
वाह !!! सर बहुत खूब
मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है
मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो
'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'
कुछ तो अनबन है ज़रूर उसकी, खुदा से 'राणा'
आज सजदे में झुकी उसकी ज़बीं कुछ कम है
बहुत ख़ूब .. बधाई
इस खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय राणा प्रताप जी।
आदरणीय राणाप्रताप जी इस सुंदर ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकारें
मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है..सादर बधाअयीए के साथ
bahut khubsurat
वाह !! आ0 राणा प्रताप जी सुंदर गजल , बहुत बधाई आपको ।
आदरणीय राणा भाई जी वाह अत्यंत सुन्दर बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर बेहद पसंद दिली दाद कुबूल फरमाएं.
वाह वाह... बहुत जानदार गज़ल कही है आ0 राणा प्रताप जी....हार्दिक बधाई...... एक एक शेर बेहद खूबसूरत है......
जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है...............नया नया उड़ने वालों का मिजाज़, बहुत सुन्दर
मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है................. बहुत गहराई में उतर ये भाव चुन कर शेर में ढाले हैं ..बहुत खूब!
हार्दिक बधाई इस गहन अर्थ संजोती सुन्दर ग़ज़ल पर
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