For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ - हजज मुसम्मन सालिम

जहाँ से अब ज़रा चलने कि तैयारी करो बिस्मिल
वहम में जी लिए कितना कि बेदारी करो बिस्मिल

जमाने ने किसे रहने दिया है चैन से अब तक
पुरानी बात छोड़ो खुद को चिंगारी करो बिस्मिल

बुरा हो वक़्त कितना भी न घबराना कभी इस से
गया अब वक़्त गर्दिश का न दिल भारी करो बिस्मिल

ग़रीबों का दुखाना मत कभी भी दिल मेरे दोस्त
दुआ किसकी मिलेगी फिर जो ज़रदारी करो बिस्मिल

सवर जाये अगर इस से बुरा क्या है ज़रा सोंचो
कभी इस मुल्क की तुम भी तो सरदारी करो बिस्मिल

    ***(( अय्यूब खान "बिस्मिल"))***

मौलिक एवम अप्रकाशित 

Views: 992

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ayub Khan "BismiL" on November 17, 2013 at 9:04pm

आपकी सलाह सर आँखों पे गिरिराज भंडारी साहब,,,,,, मेरा कहने का मतलब ये है कि सवर जाये अगर इस से बुरा क्या है ज़रा सोंचो -- इस मिसरे का जवाब मक़ते का अगला मिसरा दे रहा है कि अगर मुल्क कि सरदारी तुम करो और इससे अगर सब कुछ सवर रहा है तो इसमें बुरा क्या है बिस्मिल ,, बहतर हे कि तुम खुद इस मुल्क कि सरदारी करो 

Comment by Ayub Khan "BismiL" on November 17, 2013 at 8:55pm

bahut shukria Shijju ShakooR Bhai 

Comment by Ayub Khan "BismiL" on November 17, 2013 at 8:49pm

Venus Bhai Rajesh Kumari Ji Giriraaj Ji apki salaah sar ankho pe hai misra be-behra ho gaya apki islaah se isme sudhaar kar leta hu ...........chote bhai ko isi qadar islaah se nawazte rahe mashkoor rahunga janaab 

Comment by Ayub Khan "BismiL" on November 17, 2013 at 8:47pm

bahut bahut shukria Baidya nath sahab , Rajesh Kumari sahiba , Arun sharma sahab , Ganesh ji bagi sahab Narayan sahab Abhinaw sahab Shakeel sahab Pathak Sahab Venus Kesri Sahab ...Aap sabhi ki is qadar honsla afzaai ke liye MamnooN Hu 

Comment by Saarthi Baidyanath on November 17, 2013 at 8:20pm

बहुत खूब ग़ज़ल ...

बुरा हो वक़्त कितना भी न घबराना कभी इस से 
गया अब वक़्त गर्दिश का न दिल भारी करो बिस्मिल....बढ़िया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 17, 2013 at 3:04pm

अय्यूब खान जी क्या खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है ,सभी शेर शानदार हैं ,आदरणीय वीनस जी की बात से मैं भी सहमत हूँ इस शेर को ऐसे लिखें तो कैसा लगे ----गरीबों का दुखाना दिल कभी मत दोस्तों मेरे.... आपको बहुत बहुत बधाई  

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 2:06pm

वाह वाह वाह आदरणीय बिस्मिल साहिब लाजवाब लाजवाब ग़ज़ल पेश की है आपने मेरी पसंदीदा बह्र सभी अशआर दिल को छू गए ढेरों दिली मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2013 at 12:39pm

वाह वाह, गज़ब की खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, मतला से मकता तक सभी अशआर पसंद आये, दाद कुबूल करें मोहतरम ।  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2013 at 12:09pm

 वाह i वाह  खुद को चिंगारी करो बिस्मिल i क्या खूब बिस्मिल भाई  i आपने यकीनन अच्छी ग़ज़ल कही  i मुबारक हो i

Comment by Abhinav Arun on November 17, 2013 at 11:43am

क्या कहने बिस्मिल साहब शानदार कलाम से नवाज़ा है , मुबारकबाद !

जमाने ने किसे रहने दिया है चैन से अब तक

पुरानी बात छोड़ो खुद को चिंगारी करो बिस्मिल....इस शेर पर ख़ास दाद कबूलें !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
14 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service