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कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया

देख सियासतदानों ने सत्ता पाकर क्या काम किया

कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया

 

इल्म नया दे रस्म रिवाज अदब का काम तमाम किया

मगरीबी तहजीबें अपनाकर फिर मुल्क गुलाम किया

 

देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे

बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया

 

सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया

 

वीराना था ये घर मेरा तेरे आने से पहले

दीप जलाकर प्रेम का तुमने इसको पावन धाम किया

 

संदीप कुमार पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित  

 

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Comment by Abhinav Arun on November 18, 2013 at 7:06am

आ. संदीप जी सुन्दर कथ्य से सजी ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आपको !

Comment by वीनस केसरी on November 18, 2013 at 3:15am

मात्रा लिख दीजिए भाई, पाठकों को तक्तीअ समझने में आसानी होगी
सादर

Comment by वेदिका on November 18, 2013 at 12:31am

सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया      वाह! अप्रितम!

नायाब गजल पर दिली दाद कुबूलिए संदीप भैया!!! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2013 at 8:31pm

आदरणीय संजय भाई , समाज की वास्तविकता बयाँ करती आपकी रचना के लिये आपको बहुत बधाई !!!!

सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया  -    --     लाजवाब बात कही है !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2013 at 7:48pm

पटेल जी साधुवाद i
कडवी  सच्चाई बयाँ  करने हेतु  धन्यवाद  i  पर आपके घर  का वीराना और अँधेरा  मिटा  प्रेम पल्ल्वित हुआ,  इसकी खुशी है i

रचना मन भावन है i

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 17, 2013 at 6:46pm

आदरणीय शिज्जू जी सादर

आपकी सराहना सर आँखों स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

बहुत बहुत आभार आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 17, 2013 at 5:15pm

//सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया//  

बहुत बढ़िया आदरणीय संदीपजी दिली दाद कुबूल फरमायें

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