देख सियासतदानों ने सत्ता पाकर क्या काम किया
कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया
इल्म नया दे रस्म रिवाज अदब का काम तमाम किया
मगरीबी तहजीबें अपनाकर फिर मुल्क गुलाम किया
देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे
बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया
सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया
वीराना था ये घर मेरा तेरे आने से पहले
दीप जलाकर प्रेम का तुमने इसको पावन धाम किया
संदीप कुमार पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. संदीप जी सुन्दर कथ्य से सजी ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आपको !
मात्रा लिख दीजिए भाई, पाठकों को तक्तीअ समझने में आसानी होगी
सादर
सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया वाह! अप्रितम!
नायाब गजल पर दिली दाद कुबूलिए संदीप भैया!!!
आदरणीय संजय भाई , समाज की वास्तविकता बयाँ करती आपकी रचना के लिये आपको बहुत बधाई !!!!
सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया - -- लाजवाब बात कही है !!!!
पटेल जी साधुवाद i
कडवी सच्चाई बयाँ करने हेतु धन्यवाद i पर आपके घर का वीराना और अँधेरा मिटा प्रेम पल्ल्वित हुआ, इसकी खुशी है i
रचना मन भावन है i
आदरणीय शिज्जू जी सादर
आपकी सराहना सर आँखों स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
बहुत बहुत आभार आपका
//सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया//
बहुत बढ़िया आदरणीय संदीपजी दिली दाद कुबूल फरमायें
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