गूंजती थी जब खमोशी, हादसे होते रहे |
रात जागी थी जहां पर दिन वहीँ सोते रहे ||
अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर
अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||
कौंध कर बिजली गिरी वसुधा दिवाकर भी डरा,
कुंध तनमन क्रोध संकर बीज हम बोते रहे ||
भावना विचलित हुई जब चीर नैनो से हटा,
चार अश्रु गिर धरा पर माटी में खोते रहे ||
पीर बढती ही गई जब भावना के वेग से,
हम किनारे पर रहे हर शब्द को धोते रहे ||
गुम गए फिर शब्द सारे बह गए नद नीर में,
तब जनाजे का उठा छः गज कफ़न ढोते रहे ||
अब नजर आती नहीं है, घुप अँधेरे में किरण,
बैठकर तनहा हमी, हँसते रहे रोते रहे ||
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरणीय जीतेन्द्र 'गीत' जी, आदरणीया गीतिका 'वेदिका' जी आदरणीय वजय मिश्र साहब आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी आप सभी का अतिशय आभार.
आदरणीया गीतिका जी, मेरी यही कमजोरी है मैं सब सीधे सीधे ही लिखता हूँ और यही आपके द्वारा इंगित मिसरे में भी है- कभी कभी बच्चों का क्रोध भी माता पिता को हैरत में डाल देता है.सादर.
आ० अशोक रक्ताले जी
मर्मस्पर्शी ग़ज़ल
सभी शेर अन्तः तक पहुँचने की काबिलियत रखते हैं...
पर इस शेर नें बहुत गहरे छुआ
अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर
अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
हार्दिक शुभकामनाएँ
अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर
अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||,,,,,लाजवाब शेअर रहा!
कौंध कर बिजली गिरी वसुधा दिवाकर भी डरा,
कुंध तनमन क्रोध संकर बीज हम बोते रहे ||,,,,मे पहला मिसरा मेरी समझ के बाहर रहा!
खूबसूरत गज़ल पर बधाई लीजिये!
पीर बढती ही गई जब भावना के वेग से,
हम किनारे पर रहे हर शब्द को धोते रहे......यह शेर बहुत पसंद आया
आदरणीय अशोक जी , बेहतरीन गजल पर दिली दाद कुबूल करें
आदरणीय निलेश जी, आदरणीय अरुण जी आदरणीय संदीप भाई आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी आप सभी का बहुत बहुत आभार!
आदरणीय निलेश जी सादर आपको लय भंग लग रही है तो होगी. यह सम्भव है.आभार आपने इतना गौर किया. पुनः आभार.
आदरणीय जालवाब गजल पेश करने के लिये दाद कबूल करे ।
आदरणीय अशोक भाई , बहुत कामयाब , बहुत लाजवाब गज़ल कही है आपने , ढेरों बधाई !!!
अब नजर आती नहीं है, घुप अँधेरे में किरण,
बैठकर तनहा हमी, हँसते रहे रोते रहे || --------- लाजवाब शे र !!!
क्या बात है सर जी बहुत दिनों के बाद आपकी कोई रचना पढ़ रहा हूँ
और बस मजा ही आ गया
इस शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई हो
सादर
आदरणीय रक्त्ताले जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है सभी शेर अच्छे बन पड़े हैं दिली दाद कुबूल फरमाएं.
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