ग़ज़ल
देख लेना क्रान्ति अपनी रंग लायेगी ज़रूर
ये महा हड़ताल शासन को झुकायेगी ज़रूर
देखकर गहरा अंधेरा किसलिए मायूस हो
रात कितनी भी हो लम्बी भोर आयेगी ज़रूर
हौसला हालात से लड़ने का होना चाहिए
आयेंगे तूफ़ां तो कश्ती डगमगायेगी ज़रूर
अब बग़ावत पर उतर आओ सुनो पूरी तरह
वर्ना ये सत्ता तुम्हें भी नोंच खायेगी ज़रूर
ये हमारी सारी माँगें मान तो ली जायेंगी
हाँ मगर सरकार हमको आज़मायेगी ज़रूर
कर रही है कर्मचारी हित को अनदेखा तो फिर
तय समझ लो अब ये सत्ता चरमरायेगी ज़रूर
संगठित होकर दिखा दो संगठन में शक्ति है
जो विरोधी शक्ति होगी मुँह की खायेगी ज़रूर
माँगने से यदि न मिल पाये तो बढ़कर छीन लो
हर सफलता ख़ुद-ब-ख़ुद क़दमों में आयेगी ज़रूर
आग जो सुलगायी है हमने वो पाते ही हवा
दुश्मनों का चैन-सुख एक दिन जलायेगी ज़र
______________
[मौलिक अप्रकाशित]
राज्य कर्मचारी अधिकार मंच की महा हड़ताल को समर्पित
अजीत शर्मा ‘आकाश’ [शिक्षा विभाग, इलाहाबाद ]
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Comment
आदरणीय अजीत आकाशजी, वाह वाह वाह !
आपकी ग़ज़ल के तेवर .. सुब्हान अल्लाह ........
ऐसे ही लिखते रहें
सादर
आदरणीय अजीत शर्मा जी
देखकर गहरा अंधेरा किसलिए मायूस हो
रात कितनी भी हो लम्बी भोर आयेगी ज़रूर.........बहुत सुन्दर हौसला प्रदान करता शेर ..
बहुत सुन्दर प्रभावशाली क्रान्ति उद्घोष करती ग़ज़ल के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ..
कर रही है कर्मचारी हित को अनदेखा तो फिर
तय समझ लो अब ये सत्ता चरमरायेगी ज़रूर.............क्या यहाँ तबाकुले रदीफ़ का ऐब होगा ? या नहीं?
माँगने से यदि न मिल पाये तो बढ़कर छीन लो...........और कृपया इस मिसरे को बहर में पढने में मेरी मदद करें... क्या 'यदि' को 2 में बांधा गया है?
सादर.
वाह वाह आदरणीय एक एक शेर पर ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं बहुत ही शानदार उम्दा ग़ज़ल कही है आपने मजा आ गया
आ0 अजीत जी .... बहुत खूब कहा आप ने
संगठित होकर दिखा दो संगठन में शक्ति है
जो विरोधी शक्ति होगी मुँह की खायेगी ज़रूर
वाकई एक क्रांति सा जोश है आप की गजल मे ......................... बधाई शुभकामनाये
आदरणीय अजीत जी ..आपके ग़ज़ल वाकई क्रांति लाने वाली ग़ज़ल है ..हर शेर उम्दा , आशावादिता से परिपूर्ण, कहीं आक्रोश दर्शाती है , कही हकीकर से रूबरू करती है , कहीं चेंताव्नी ...सचमुच कमाल के ग़ज़ल ..मेरी तरफ से ढेरों बधाई स्वीकार करें ..सादर
हड़तालियों का हौसला बुलंद करने वाली सुंदर गज़ल की बधाई अजीत भाई।
आदरणीय अजीत शर्मा जी बेहतरीन गज़ल है हर एक शेर दमदार है दिली दाद कुबूल करें
आदरणीय अजीत भाई ,!!!!बहुत सुन्दर ,ओजस्वी गज़ल कही है बहुत बधाई !!!!!
इस मिसरे मे -
दुश्मनों का चैन-सुख एक दिन जलायेगी ज़र -- एक को इक कर लीजिये , मत्रा सही हो जायेगा !!! और ज़रूर केवल ज़र टाइप हो गया है , टंकण की गलती सुधार लें !!!!
क्या बात है सर जी बहुत ही ओजपूर्ण ग़ज़ल कही है आपने
सादर बधाई स्वीकारिये
जय हो
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