वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं
दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं
चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है
विरह की आग में जलने के बाद आते हैं
न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों
तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं
हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद
हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं
तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से
तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं ..............दीप...............
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जय हो आदरणीय, बढि़या प्रस्तुति है, इधर कुछ अरसे से देख रहा हूं कि आपकी लेखनी में कुछ चटकीले रंग घुल गए हैं जो उपर-उपर तैरते हुए से लग रहे हैं, कुछ गहरे रंग भी पेश करें गुजारिश है ताकि आप्राण अनुप्राणित हो रोम-रोम से जय हो कर सकें, सादर
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है संदीप जी। हर एक शेर लाजवाब। और ये शेर तो बहुत अच्छा हो गया है:
चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है
विरह की आग में जलने के बाद आते हैं
ढेरों दाद कुबूल हो
वाह वाह वाह और वाह ...क्या मतला क्या शेर .. क्या ग़ज़ल ... आहा ... ऐसी ग़ज़ल पढना ..बहुत बहुत बधाई. बहुत बड़ी ग़ज़ल है ये ..संदीप भाई ..सहेजियेगा... आप की ज़िम्मेदारी बढ़ गई है इस ग़ज़ल के बाद क्यूँ की हमारी उम्मीदें बढ़ गई है आप से.
लाजबाब गजल के लिये ढेरों बधाइयाँ
लाजवाब शानदार ख़ूबसूरत कलाम ! बधाई संदीप जी !!
आदरणीय संदीप भाई जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल दो शेर तो कमाल के बन पड़े हैं इनके लिए विशेष दाद कुबूल फरमाएं.
न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों
तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं.. बेहतरीन
हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद
हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं .. बेहद उम्दा वाह वाह
हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद
हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं-----वाह्ह्ह शानदार शेर संदीप जी दाद कबूलें
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