For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है

बात सच जो लबे खुद्दार में आ जाती है

मैं ये सोचे हूँ क्यूँ बेकार में आ जाती है

 

सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो  

उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है

 

हर दफा सुन के चुनावी औ सियासी बातें

याँ चमक सूरते बीमार में आ जाती है

 

गालियाँ भीड़ को दे यार से भी लड़ मर ले

कैसे हिम्मत किसी मैख्वार में आ जाती है

 

रोते चेहरों को हँसाना ही जिन्हें है भाता  

रूह उन जैसी भी संसार में आ जाती है

 

बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा

घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है

 

“दीप” मुस्कान लिए लब पे हमेशा जलना

ऐसे जलने की अदा प्यार में आ जाती है

.............दीप...............

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on November 26, 2013 at 7:58pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

हम भी खड़े हैं राहों में नज़रे-इनायत के लिए!

Comment by नादिर ख़ान on November 26, 2013 at 4:36pm

सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो  

उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है 

 

बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा

घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है 

क्या ही खूबसूरत अशआर है, बहुत खूब आदरणीय  संदीप जी ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 26, 2013 at 2:14pm

आदरणीय सन्दीप भाई , सम्पूर्ण गज़ल बहुत लाजवाब कही है , आपको तहे दिल से बधाई !!!! आदरणीय बह्र लिख देने से समझने में आसानी होती !!!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 26, 2013 at 1:54pm

बहुत खूब संदीप भाई, दूसरे और छ्ठें की विशेष बधाई ॥

Comment by Sushil Sarna on November 26, 2013 at 12:54pm

ati sundr....sundr bhaavon ka sundr guldasta..mubarak

Comment by Saarthi Baidyanath on November 26, 2013 at 12:46pm

सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो  

उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है........दर्द है साहब ...उम्दा शेर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2013 at 12:44pm

पटेल जी

आपने मित्र मन मोह लिया

आगाज से अंजाम तक

क्या खूब कहा है

भाव भक्तो को मजा आएगा  i मेरी बधाई i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service