बात सच जो लबे खुद्दार में आ जाती है
मैं ये सोचे हूँ क्यूँ बेकार में आ जाती है
सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो
उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है
हर दफा सुन के चुनावी औ सियासी बातें
याँ चमक सूरते बीमार में आ जाती है
गालियाँ भीड़ को दे यार से भी लड़ मर ले
कैसे हिम्मत किसी मैख्वार में आ जाती है
रोते चेहरों को हँसाना ही जिन्हें है भाता
रूह उन जैसी भी संसार में आ जाती है
बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा
घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है
“दीप” मुस्कान लिए लब पे हमेशा जलना
ऐसे जलने की अदा प्यार में आ जाती है
.............दीप...............
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
हम भी खड़े हैं राहों में नज़रे-इनायत के लिए!
सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो
उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है
बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा
घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है
क्या ही खूबसूरत अशआर है, बहुत खूब आदरणीय संदीप जी ....
आदरणीय सन्दीप भाई , सम्पूर्ण गज़ल बहुत लाजवाब कही है , आपको तहे दिल से बधाई !!!! आदरणीय बह्र लिख देने से समझने में आसानी होती !!!
बहुत खूब संदीप भाई, दूसरे और छ्ठें की विशेष बधाई ॥
ati sundr....sundr bhaavon ka sundr guldasta..mubarak
सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो
उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है........दर्द है साहब ...उम्दा शेर
पटेल जी
आपने मित्र मन मोह लिया
आगाज से अंजाम तक
क्या खूब कहा है
भाव भक्तो को मजा आएगा i मेरी बधाई i
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