आँखों से बहता लहू
लाल लाल धधकती ज्वालायें
कृष्ण केशों सी काली लालसाएँ
ह्रदय की कुंठा
असहनीय वेदना
दर्दनाक कान के परदे फाड़ती
चीखें
लपलपाती तृष्णा
तिलमिलाती भूख
अपाहिज प्रयास
इच्छाओं के ज्वार भाटे
आश्वासन की आकाशगंगा
विश्वासघाती उल्कापिंड
हवस से भरे भँवरे
शंकाओं से ग्रसित पुष्प
उपेक्षाओं के शिकार कांटे
हाहाकार चीत्कार ठहाके
विदीर्ण तन
लतपथ , लहूलुहान बदन
जो बींध डालता है
अंतर्मन
कहीं हाथों की
गदेलियों की ओट में
छुपा चंदा
कुंठित, लज्जित, शर्मिंदा
फटे चीथड़े
तंग कपड़ों में
कराहता सा
वर्तमान की कोख में पलता
भविष्य
घिरा आशंकाओं से
लालायित
तथाकथित ममता के लिए
और
आतुर है उड़ने को
देखता ही नहीं
शालीनता धरती की
सोच है बस आसमाँ की
माँ ने दिए हैं
पर ..............
कहीं
कूड़ेदान में जीवन
अद्भुत आज
एक सिक्के में
करोड़ों की दुआएं
और
एक पेट के लिए छप्पन भोग
और छप्पन पेटों के लिए
एक वक़्त की एक रोटी
कहीं
सुराही दार दीप्तिस्तम्भ
आलीशान महल
आँगन में लाखों रंगीन पुष्प
कहीं जलती दियासलाई
और झुलसती झोपड़ियां
और एक ही रंग
दरो दीवार , आँगन हर जगह
दर्द का
पानीदार
पानीदार
और सिर्फ पानीदार
बस कर कवि
मत लिख
मत लिख तू
इस वर्तमान पर कविता
मत कर आहत कविता को
उसके सौन्दर्य को
के उसके बदन से टपकने लगे लहू
और
उसे देख मचलाने लगे जी
पाठकों का और श्रोताओं का
मत कर आहत कविता को
के शब्द सागर से निकले मोती
रक्तरंजित कांतिहीन हो जाएँ
हे कवि मत लिख तू कविता
वर्तमान पर
क्यूंकि कविता ढाल लेती है
सबको अपने रंग में
संदीप पटेल "दीप"
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सन्दीप भाई ,आज के सामज की विडम्बनाओं को आपने बहुत सुन्दर शब्द दिया है !!!! बहुत खूब !!! बहुत बधाई !!!
बहुत सुन्दर रचना आदरणीय संदीप जी .. बधाई स्वीकारें
एक पेट के लिए छप्पन भोग
और छप्पन पेटो के लिए
एक वक़्त की रोटी
वाह पटेल जी , क्या बात है ?अति सुन्दर i
behad shaandaar rachna......antrman ke antrdwand ko aapne bkhoobee darshaaya hai...is gahan anubhuti kee rachna ke liye haardik badhaaee aa.Sandeep Patel jee
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