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बहर ... २२२ २२२ २२ 

वो जब से सरकार हुए हैं

सब कितने लाचार हुए हैं

जन सेवा अब नाम ठगी का

सपनोँ के व्यापार हुए हैं

धोखे देते बन के साधू

ऐसे ठेकेदार हुए हैं

मज़हब के भी नाम पे देखो

कितने अत्याचार हुए हैं

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on December 26, 2013 at 5:54pm
इस भाव पूर्ण गजल के लिए बधाई आपको । 
Comment by Abhinav Arun on December 26, 2013 at 11:13am

अहा ! इसे कहते हैं सादगी में क़यामत का असर ...गज़ब का कलाम हर शेर कामयाब ज़िन्दाबाद ...आज के दौर की आईना ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद आ. महिमा श्री जी आपकी कीर्ति चतुर्दिक फैले , नव वर्ष की मंगल कामनाएं !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 26, 2013 at 11:07am

धोखे देते बन के साधू

ऐसे ठेकेदार हुए हैं.........वर्तमान समय में यही सब हो रहा है

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं........अवसरवादियों पर कटाक्ष

कटु सत्यता ली हुयी, लाजवाब गजल पर बधाई स्वीकारें आदरणीया महिमा जी

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2013 at 6:47am

आदरणीया महिमा जी,

बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने ,अनेकों बधाइयाँ

Comment by ajay sharma on December 25, 2013 at 10:15pm

jo ab tak jhukkar chalte the 

vo sare khuddar huye hain  / ............bhi ho  sakta tha .....

wah wah wah...... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 25, 2013 at 10:05pm

वाह आदरणीया महिमा जी बेहतरीन रवां ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by coontee mukerji on December 25, 2013 at 9:22pm

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं...........वाह क्या बात है.

 .......


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 25, 2013 at 8:31pm

आदरणीया महिमा जी , बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने , आपको अनेकों बधाइयाँ ॥

Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 8:15pm

आभार आदरणीय अनुराग जी .. सादर 

Comment by Anurag Singh "rishi" on December 25, 2013 at 8:09pm

सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई
सादर

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