'मैं-तुम’ के शुभ योग से, 'हम’ का आविर्भाव
यही व्यष्टि विस्तार है, यही व्यष्टि अनुभाव
यही व्यष्टि अनुभाव, ’अपर-पर’ का संचेतक
’अस्मि ब्रह्म’ उद्घोष, ’अहं’ का धुर उत्प्रेरक
’ध्यान-धारणा’ योग, सतत संतुष्ट रखे ’मैं’
’प्रेय’ क्षुद्र व्यामोह, ’श्रेय’ निर्वाह करे ’मैं’
’तुम’ ऊर्जा, ’तुम’ प्राणवत, ’तुम’ ’मैं’ का विस्तार
गहन भाव संतृप्त यह, मानवता का सार
मानवता का सार, सदा जग ’तुम’ से सधता
’मैं’ कारक का सूच्य, जगत तो ’तुम’ से चलता
बहु-धारक का भाव, जिये ज्यों खगधारी द्रुम
संज्ञाएँ प्रच्छन्न, धारता हर संभव ’तुम’
’हम’ अद्भुत अवधारणा, ’हम’ अद्भुत संज्ञान
यह समष्टि के मूल का अति उन्नत विज्ञान
अति उन्नत विज्ञान, व्यक्तिवाचक का व्यापन
उच्च भाव संपिण्ड, ’अहं’ का भाव समापन
उच्च मनस का हेतु, ’भाव-कर्ता’ पर संयम
स्वार्थ तिरोहित सान्द्र, तभी हो ’मैं-तुम’ का ’हम’
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--सौरभ
(मौलिक और अप्रकशित)
Comment
परम आ. सौरभ जी सादर,
परिष्कृत भाषा शैली एवं दार्शनिक दृष्टिकोण के आधार पर सुंदरता से परिभाषित हुए हैं तीनों शब्द. आदरणीय हार्दिक बधाई
"मैं, तुम, हम" के माध्यम से आध्यात्मिकता की व्यावहारिक यात्रा करवा दी आपने ! मानो हरेक पंक्ति किसी महाकाव्य का सार हो ! प्रसंशा में कुछ भी कह् पाना बहुत मुश्किल !
आदरणीय सौरभ जी,
महावाक्यों के भाव को प्रेषित करती इस रचना के लिए करतल ध्वनि।
सादर,
विजय निकोर
मानवता का सार, सदा जग ’तुम’ से सधता
’मैं’ कारक का सूच्य, जगत तो ’तुम’ से चलता.....आदरणीय सौरभ जी ये सारी कुंडलियां ही >>>मानवता का सार..
'मैं-तुम’ के शुभ योग से, 'हम’ का आविर्भाव...उम्दा भाव ..श्रेष्ठ कुण्डलियाँ /लेखन को साधुवाद
आदरणीय सौरभ भाई , उच्च स्तरीय आध्यात्मिक कुण्डलिया की हार्दिक बधाई॥
मैं को तुम से जोड़िये, रहा न मैं का भाव ॥
पल भर में ही हो गया, हम का आविर्भाव॥॥
आदरणीय सौरभ सर आपने बहुत बेहतरीन कुण्डलिया रची है बहुत बहुत बधाई आपको इन कामयाब रचनाओं के लिये
सौरभ जी आपकी सुंदर रचना हमेशा हमारा मार्गदर्शन करती है....यथा..
हम’ अद्भुत अवधारणा, ’हम’ अद्भुत संज्ञान
यह समष्टि के मूल का अति उन्नत विज्ञान
अति उन्नत विज्ञान, व्यक्तिवाचक का व्यापन
उच्च भाव संपिण्ड, ’अहं’ का भाव समापन
उच्च मनस का हेतु, ’भाव-कर्ता’ पर संयम
स्वार्थ तिरोहित सान्द्र, तभी हो ’मैं-तुम’ का ’हम.......
सादर
कुंती.
आदरणीय सौरभ सर . हार्दिक .आभार ..इतनी उच्च कोटि की कुंडलियाँ और कथ्य , शब्द संयोजन सब जैसे सम्मोहित कर ता हुआ .. मंत्रमुग्ध प्रस्तुती .कुछ भी कहना जैसे सूरज को दिया दिखाना ...हार्दिक बधाईयाँ ..सादर
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ........ |
आदरणीय सौरभ भाई , आध्यात्म दर्शन पर आपकी तीनो कुन्डलियाँ लाजवाब हैं , मेरे विचार से , मै का तुम होने मे ही कठिनाई बहुत है , तुम से हम की दूरी फिर सरल हो जाती है ॥ वाह भाई जे बहुत कठिन विषय को आपने सरलता से छ्न्द बद्ध किया है , आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ॥
मै को तुम कर लीजिये , राह सरल हो जाय
यही भाव जब सान्ध्र हो, हम खुद ही हो जाय
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