बह्र : हज़ज मुरब्बा सालिम
सदा दिन रात भिनसारे,
गिरें नैनों से अंगारे,
हमें पागल वो कहते हैं,
थे जिनकी आँख के तारे,
समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,
घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे,
हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,
यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
हर अश'आर दमदार, बेहद उम्दा.............
हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,....................बेहतरीन...................
हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे
बेहद दर्द भरी ग़ज़ल ....!!! मर्मभेदक
हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,.....क्या बात है. बधाई.
waah bahut khoob arun ji badfhai
wah bade bhai .........bahut hi umda
उम्दा...
हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,.......जान लेवा शेर हुआ
यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे...........कमाल
लाजवाब सुंदर गजल, आदरणीय अरुण जी दिली दाद कुबूल कीजिये
सुंदर गजल बधाई आपको प्रिय अरुण ।
हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,
यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे.
वाह-वाह अरुण जी, उम्दा अशआर और ख्वाहिश के क्या कहने .....
समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,
घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे,
हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,
उम्दा गजल अरुण ,हार्दिक बधाई
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