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बह्र : हज़ज मुरब्बा सालिम


सदा दिन रात भिनसारे,
गिरें नैनों से अंगारे,

हमें पागल वो कहते हैं,
थे जिनकी आँख के तारे,

समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,

घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे,

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,

यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुण कुमार निगम on January 10, 2014 at 9:19am

हर अश'आर दमदार, बेहद उम्दा.............

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,....................बेहतरीन...................

Comment by vandana on January 10, 2014 at 7:36am

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे

बेहद दर्द भरी ग़ज़ल ....!!! मर्मभेदक 

Comment by coontee mukerji on January 10, 2014 at 1:49am

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,.....क्या बात है. बधाई.

Comment by shashi purwar on January 9, 2014 at 10:07pm

waah bahut khoob arun ji badfhai

Comment by ajay sharma on January 9, 2014 at 9:38pm

wah bade bhai .........bahut hi umda 

Comment by Ajay Agyat on January 9, 2014 at 9:11pm

उम्दा...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 9, 2014 at 8:27pm

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,.......जान लेवा शेर हुआ

यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे...........कमाल

लाजवाब सुंदर गजल, आदरणीय अरुण जी दिली दाद कुबूल कीजिये

Comment by annapurna bajpai on January 9, 2014 at 7:11pm

सुंदर गजल बधाई आपको प्रिय अरुण । 

Comment by नादिर ख़ान on January 9, 2014 at 4:35pm

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,

यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे.

वाह-वाह अरुण जी, उम्दा अशआर और ख्वाहिश के क्या कहने .....

Comment by Sarita Bhatia on January 9, 2014 at 2:39pm

समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,

घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे,

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,

उम्दा गजल अरुण ,हार्दिक बधाई 

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