For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गर्वीला पुष्प (अन्नपूर्णा बाजपेई)

शाख पर लगा 

अलौकिक सौंदर्य पर इतराता 

वसुधा को मुंह चिढ़ाता 

मुसकुराता इठलाता 

मस्त बयार मे कुलांचे भरता 

गर्वीला पुष्प !.......... 

सहसा !!!

कपि अनुकंपा से 

धराशायी हुआ 

कण कण बिखरा 

अस्तित्व ढूँढता 

उसी धरा पर 

भटकता यहाँ से वहाँ 

उसी वसुधा की गोद मे समा जाने को आतुर ... 

बेचारा पुष्प !!! 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 912

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on January 27, 2014 at 10:37pm

अब क्या कहूँ? रचना को मिला मुखर अनुमोदन बस बधाई देने को कह रहा है! इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Meena Pathak on January 27, 2014 at 9:34pm

बेहद सुन्दर रचना , बधाई आप को अन्नपूर्णा जी 

Comment by Neeraj Neer on January 27, 2014 at 8:53pm

ओह ! यह कपि अनुकम्पा तो कुछ ज्यादा ही हो गयी :) सुन्दर कविता , जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2014 at 6:06pm

आदरनीया अन्नपूरणा जी , जीवन की क्षण भंगुरता बताती आपकी सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Neeraj Nishchal on January 27, 2014 at 5:25pm

क्यों बेचारा पुष्प बिखर जाना ही शायद उसका सौभाग्य हो
और वही हो उसकी मंज़िल जिस धरती से उगा उसी धरती में समा गया
बहुत सुन्दर कविता बहुत बहुत बधाई प्रेषित है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2014 at 12:13pm

आदरणीय अन्नपूर्णा जी सुकोमल भावों से परिपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 27, 2014 at 10:44am

वाह अन्नपूर्णा जी बेहद सुकोमल भावों से लबरेज सुन्दर प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको.

Comment by vandana on January 27, 2014 at 5:42am

बहुत सुन्दर भाव आदरणीया अन्नपूर्णा जी 

Comment by annapurna bajpai on January 26, 2014 at 6:02pm

आदरणीय कुशवाहा जी , प्रिय महिमा आपका हार्दिक आभार । 

Comment by MAHIMA SHREE on January 26, 2014 at 5:33pm

सुंदर प्रस्तुती आदरणीया अन्नपूर्णा जी बधाई ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service