हम है क्या कुछ भी नहीं, ईश अंश ही सार,
मन के भीतर रोंप दे, सद आचार विचार |
त्याग और सहयोग का, जिसके दिल में वास
माली जैसा भाव हो, उस पर ही विश्वास |
समय नहीं करुणा नहीं, बाते करते व्यर्थ,
भाव बिना सहयोग के, साथी का क्या अर्थ |
समीकरण बैठा सके, बहिर्मुखी वाचाल,
संख्या उनके मित्र की, होती बहुत विशाल |
घंटों उठते बैठते, कछु न मदद की आस,
समय गुजारे व्यर्थ में, दोस्त नहीं वे ख़ास |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपकी मुखर और विश्लेस्नात्मक प्रतिक्रया का मै आकांक्षी रहा हूँ आदरणीय श्री सौरभ जी, उत्साहवर्धन के लिए
तहे दिल से हार्दिक आभार स्वकरे | सादर
सहयोग, विश्वास और अपकार पर मुखर पाँचों दोहे अति उन्नत हैं आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.
कथ्य और तथ्य को सुगढ़ शिल्प का आधार मिला है, आदरणीय.
इन पाँचों सफल और निर्दोष दोहा छंदों के लिए हृदय से बधाइयाँ स्वीकारिये.
सादर
उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी
आपकी ही प्रतिक्रया की प्रतीक्षा रहती है डॉ प्राची जी | इन प्रस्तावित संशोधन पर कृपया राय से अवगत करावे -
समीकरण बैठा सके...... जोड़ तोड़ बैठा सके
कछु न मदद की आस... नहीं मदद की आस
सादर
इन सुन्दर दोहों के लिए बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सुन्दर दोहे आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी
बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.
समीकरण बैठा सके...... आरम्भ जगण से हो रहा है
कछु न मदद की आस.......इसमें ज़रा सी गेयता अवरुद्ध है
सादर.
उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार श्री रमेश कुमार चौहान जी
आदरणीय लक्ष्मणजी , सभी दोहे सुंदर बन पडे है, सादर बधाई
हार्दिक आभार आदरणीया कुन्ती मुकर्जी, श्री बृजेश नीरज जी, श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, श्री विजय मिश्र जी,
एवं श्री राम शिरोमणि पाठक जी
समय नहीं करुणा नहीं, बाते करते व्यर्थ,
भाव बिना सहयोग के, साथी का क्या अर्थ |//////बहुत सुन्दर
सुन्दर दोहे .. बधाई आदरणीय | सादर
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