छन्न पकैया, छन्न पकैया, दिन कैसे ये आए,
देख आधुनिक कविताई को, छंद,गीत मुरझाए।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, गर्दिश में हैं तारे,
रचना में कुछ भाव हो न हो, वाह, वाह के नारे।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, घटी काव्य की कीमत,
विद्वानों को वोट न मिलते, मूढ़ों को है बहुमत।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, भ्रमित हुआ मन लखकर,
सुंदरतम की छाप लगी है, हर कविता संग्रह पर।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, कविता किसे पढ़ाएँ,
पाठक भी अब यही सोचते, कुछ लिख, कवि कहलाएँ।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, रचें किसलिए कविता,
रचना चाहे ‘खास’ न छपती, छपते ‘खास’ रचयिता।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, अब जो ‘तुलसी’ होते,
देख तपस्या भंग छंद की, सौ-सौ आँसू रोते।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुंदर सार छंद (छन्न पकैया) रचना के लिए बधाई आदरणीया कल्पना जी -
छन्न पकैया, छन्न पकैया, अब जो ‘तुलसी’ होते,
देख तपस्या भंग छंद की, सौ-सौ आँसू रोते। --------बहुत खूब
वैसे यह सच्चाई है कि जिस की पहुँच होती है या जिस के पास पैसा होता है वह किसी भी तरह अपनी पुस्तक छपवा कर ख्याति प्राप्त करने की कोशिश करता है . सही रचयिता गुमनामी की जिन्दगी में मर जाता है .
सार छंद के विधान में निम्नलिखित तथ्य ध्यातव्य हैं -
पदों के दोनों चरणान्त गुरु-गुरु (ऽऽ, २२) या गुरु-लघु-लघु (ऽ।।, २११) या लघु-लघु-गुरु (।।ऽ, ११२) या लघु-लघु-लघु-लघु (।।।।, ११११) से होते हैं.
किन्तु गेयता के हिसाब से गुरु-गुरु से हुआ चरणान्त अत्युत्तम माना जाता है लेकिन ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं हुआ करती.
अलबत्ता यह अवश्य है, कि पदों के किसी चरणान्त में तगण (ऽऽ।, २२१), रगण (ऽ।ऽ, २१२), जगण (।ऽ।, १२१) का निर्माण न हो.
तथा, आपने सार छंद आधारित काव्यरचना अवश्य की है, आदरणीया कल्पनाजी, किन्तु, इसे छन्न पकैया का नाम दिया गया है. कारण कि प्रत्येक बंद का प्रथम विषम चरण छन्न पकैया छन्न पकैया के रूप में होता है. अन्यथा, सार छंद में ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती कि उसके प्रत्येक बंद का पहला विषम चरण किसी वाक्य या वाक्यांश की आवृति का आग्रही हो.
आपकी इस प्रस्तुति के कई बंद तार्किक रूप से अनुमन्य हैं. इस हेतु हृदय से बधाई, आदरणीया.
यह सत्य है, कि छंद और गीतों का मर्सिया पढ़ने वाले और इनके ’मर जाने’ की घोषणा कर देने वाले आज गेय कविताओं और इसके विभिन्न प्रारूपों (जैसे ग़ज़ल आदि) की लोकप्रियता से और काव्य-साहित्य में छंदों के वापस व्याप जाने से चकित हैं. उन्हें बलात मुँह छिपाना पड़ रहा है.
सादर
आदरनीया , बहुत सुन्दर विषय पर सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई ॥
बहुत सुन्दर सार्थक कटाक्ष करते छन्न पकैया वाह्ह ...बहुत बहुत बधाई आपको आ० कल्पना रमानी जी.
छन्न पकैया छन्न पकैया, रमे राम जन जन में |
कविताई शारद भरती हैं, कवि के सुंदर मन में ||
छन्न पकैया छन्न पकैया, कविताओं की थाती |
भावहीन को कैसे भाये, रसिकों को हर्षाती ||
छन्न पकैया छन्न पकैया, साम्यवाद पापी है |
जब से यह कविता में आया, कविताई काँपी है ||
आदरणीया कल्पना जी को कोटिशः बधाई
आदरणीया कल्पनाजी,
आधुनिक कविता, अकविता, नई कविता पर सुंदर व्यंग्य, हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर ललित छंद -- सभी जोरदार हार्दिक बधाई आ. कल्पना जी
कल्पना दी आप ने सार गर्वित बात कही है बहुत बधाई आप को । सादर !!!!!!!!!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online