For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल तो दीवाना हुआ

दिल तो दीवाना हुआ

 

आपका इस घर मे कुछ इस तरह आना हुआ

ऐसा लगता है यह घर है आपका जाना हुआ ।

मुझको तो मालूम न था आप यूं छा जाएँगे

रेशमी ज़ुल्फों मे मुझको , यूं छुपा ले जाएँगे । 

आपकी ज़ुल्फों मे खोये  सुबह का आना हुआ

ऐसा लगता है यह घर है आपका जाना हुआ ।।

आप सावन की घटा हैं, या हैं फागुन की बहार ?

अब गले लग जाइए , मत देखिये यूं बार बार ।

नयन है मदहोश अब  तो प्यार पैमाना  हुआ

ऐसा लगता है यह घर है  आपका जाना हुआ ।।

मुखड़ा पूनम चाँद जैसा , उफ़ ये मतवाली सी चाल

कैसे मैं खुद को सम्हालूँ दिल तो दीवाना हुआ ।

ऐ आहटों छेड़ो न तुम , ऐ वक्त थम भी जाओ तुम

क्यूँ  मची है खलबली  जब  आपको पाना हुआ ।।

 

--------- मौलिक और अप्रकाशित ---------

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 8, 2014 at 5:47pm
क्या बात है ब्रह्मचारी जी !! नए रंग और नए अंदाज़ में आपको पाना सुखद अनुभूति है...शुभकामनाएँ.
Comment by coontee mukerji on April 6, 2014 at 1:05pm

रूमानियत से भरपूर अगर ग़ज़ल में कही जाय तो बेहद सुंदर होगा....भाई साहब प्रयास करने में क्या हर्ज़ है.ओबीओ मंच पर गज़लों के गुरू भरे हुए है.मार्गदर्शन मिल सकते है....सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2014 at 9:37pm

आदरणीय ब्रह्मचारी जी 

आप ग़ज़ल विधा पर थोड़ा सा प्रयास करें और तरही मुशायरों को सुरुचिपूर्वक देखते चलें तो आप सुन्दर रवायती ग़ज़ल कहना सीख सकते हैं..

इस शृंगारिक प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 5, 2014 at 12:20pm

लय के साथ सुंदर शब्द , अच्छी रचना , हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 4, 2014 at 11:31pm

बहुत खुबसूरत अंदाज, बधाई आपको आदरणीय

Comment by Saarthi Baidyanath on April 4, 2014 at 1:15pm

क्या दिलकश अंदाज़ है मान्यवर 

मुखड़ा पूनम चाँद जैसा , उफ़ ये मतवाली सी चाल

कैसे मैं खुद को सम्हालूँ दिल तो दीवाना हुआ ।........बेहतरीन ..बहुत खूब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
13 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service