सिर चढ़ आया
फिर से दिन का
भीतर धमक मलालों में..
ऐसे हैं
संदर्भ परस्पर..
थोथी चीख.. उबालों में !
जहाँ साँझ के
गहराते ही
भरें दिशाएँ हुआँ-हुआँ
फटी बिवाई
ले पाँवों में
नमी हुई है धुआँ-धुआँ
पथ के पिघले डामर को ले
सूरज घिरा
सवालों में !
सेमल के घर आग लगी है
भीतर-बाहर
रुई-रुई
आँखों पारा छलक रहा है
बहते हैं
अवसाद कई
निर्जल राहें अवसादों की
रखें तरावट छालों में..
एक मुहल्ला अब भी
बसता-ढहता है
हर शाम-सुबह
दृष्टि गड़ाये गिद्ध लगे हैं
लाशों पर
कर रहे सुलह
इस मरघट में मैना कैसे
सोचे तान खयालों में ?
************
-सौरभ
************
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक धन्यवाद अतेन्द्रजी, आपको मेरा प्रयास सार्थक लगा.
आदरणीय राजेश कुमारीजी, आपकी सुधी और संवेदनशील दृष्टि से यह रचना समृद्ध हुई. यह सत्य है कि ऐसे जीवन और उसके दर्द को जीने वाले बस ऐसे ही जीया करते हैं, बिना उत्तर जाने बराबर प्रश्न करते हुए.
सादर
एक मुहल्ला अब भी
बसता-ढहता है
हर शाम-सुबह
दृष्टि गड़ाये गिद्ध लगे हैं
लाशों पर
कर रहे सुलह
इस मरघट में मैना कैसे
सोचे तान खयालों में ?
गहरी पीड़ा की अभिव्यक्ति ....मन मस्तिष्क को आंदोलित करता नवगीत आदरणीय सौरभ सर सादर नमन
आदरणीय सौरभ सर इस नवगीत का हर शब्द और उनका विन्यास अपनी बात मुखर होकर कहता सा महसूस होता है, बेहद खूबसूरत रवाँ नवगीत के लिये दिली दाद कुबूल करें
एक मुहल्ला अब भी
बसता-ढहता है
हर शाम-सुबह
दृष्टि गड़ाये गिद्ध लगे हैं
लाशों पर
कर रहे सुलह
इस मरघट में मैना कैसे
सोचे तान खयालों में ? …वाह नवगीत में गहन भावों की सुंदर अभिव्यक्ति …सरल और सरस शब्दों का सुंदर प्रवाह पाठक को अंत तक बांधे रखता है .... इस अनुपम सृजन के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ जी
बहुत सुंदर नवगीत...बहुत-बहुत बधाई................... |
आदरणीय सर जी सादर प्रणाम ........क्या कहे क्या न कहे हमारी मजाल कहाँ कि हम कमेंट्स करें ..फिर भी आप सबके मार्गदर्शन में हम भी चलना सीख रहें हैं ....वैसे आपकी हर रचना अपनें आप में होती है फिर भी यह नवगीत जो आज के दीन दशा को उकेरता है ....बहुत बहुत बधाई आपको और बारम्बार नमन आपकी कलम को
एक मुहल्ला अब भी
बसता-ढहता है
हर शाम-सुबह
दृष्टि गड़ाये गिद्ध लगे हैं
लाशों पर
कर रहे सुलह
इस मरघट में मैना कैसे
सोचे तान खयालों में ? -----आह कहूँ या वाह कहूँ सोच रही हूँ ....बहुत ही मर्म स्पर्शी नव गीत लिखा है आपने निर्धनता, मजबूरी के आंसुओं का सैलाब है ये रचना.. बहुत खूब ..बहुत- बहुत बधाई आपको आपकी कलम को नमन.
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