मात्रिक छंद
हमसे रखो न खार, किताबें कहती हैं।
हम भी चाहें प्यार, किताबें कहती हैं।
घर के अंदर एक हमारा भी घर हो।
भव्य भाव संसार, किताबें कहती हैं।
बतियाएगा मित्र हमारा नित तुमसे,
हँसकर हर किरदार, किताबें कहती हैं।
खरीदकर ही साथ सहेजो, जीवन भर,
लेना नहीं उधार, किताबें कहती हैं।
धूल, नमी, दीमक से डर लगता हमको,
रखो स्वच्छ आगार, किताबें कहती हैं।
कभी न भूलो जो संदेश मिले हमसे,
ऐसा हो इकरार, किताबें कहती हैं।
सजावटी ही नहीं सिर्फ हमसे हर दिन,
करो विमर्श विचार, किताबें कहती हैं।
सैर करो कोने कोने की खोल हमें,
चाहे जितनी बार, किताबें कहती हैं।
रखो ‘कल्पना’ हर-पल हमें विचारों में,
उपजेंगे सुविचार, किताबें कहती हैं।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
महनीया\
मुझसे बतानेमे त्रुटि हुई दरअसल प्रथम पंक्तियों का अंत कही यगण , कही सगण से कही नगण से, कही तगण से है i यह कन्फुजन आप ही दूर कर सकती है महनीया i
मह्नीया
मै इसे गजल समझ बैठा पर आपने इसे मात्रिक छंद लिखा है i 22 मात्रा वाले प्रचलित छंद में इसका विन्यास नहीं दीखता i ११ मात्रा वाले छ न्दो की नजर से देखे तो प्रथम ११ मा त्राए अहीर छन्द की लगती है क्योंकि अंत में जगण है i इसी प्रकार बाद की ११ मात्राये
भव छंद की लगती है क्योंकि इनका अंत यगण से है i कृपया द्विविधा दूर करने की कृपा करे और हमारी जानकारी के लिए छंद से अवगत कराये i मुझसे कोई त्रुटि हुयी हो तो छमा भी करे i आदरणीया i
हमसे रखो न खार, किताबें कहती हैं।
हम भी चाहें प्यार, किताबें कहती हैं … वाआआअह आदरणीय कल्पना जी वाह किताबों पर लिखी आपकी ये रचना वास्तव में काबिले तारीफ़ है … अव्यक्त भावों को समेटे इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
संदेश देती इस सुन्दर गज़ल के लिए बधाई, आदरणीया कल्पना जी।
महनीया
गजल तो सुन्दर है ही i इसका सन्देश बड़ा व्यापक है i बधाई हो i
बहुत सुंदर, आदरणीया कल्पना जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें
बहुत सुन्दर, आज के अंतरजाल प्रेम की दुनियां में किताबों का मित्र बनने की प्रेरणा देती सशक्त रचना. बधाई स्वीकारें आ० रामानी जी. .
बहुत खूब आ० कल्पना दी , हार्दिक बधाई .
धूल, नमी, दीमक से डर लगता हमको,
रखो स्वच्छ आगार, किताबें कहती हैं।---वाह्ह्ह अशआरों के माध्यम से सही सीख दी है आपने आ० कल्पना दी ,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई आपको |
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