“बहन ! ये औरतें गठड़ियों में क्या ले जा रही हैं ?”
”विधवा औरतों के लिए कैंप लगा है, वहां उन्हें महीने भर का राशन बांटा जा रहा है।”
पिछले तीन दिन से भूखी सुखिया ने नशे में धुत्त लेटे अपने पति को ऐसे देखा मानो आज उसे अपने “सुहागन” होने पर पछतावा हो रहा था.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
सुखिया की आँखों से उफनता निठल्ले पति के लिए तिरस्कार को जिन शब्दों में बाँधा गया है उसके लिए संवेदनशील हृदय चाहिये.
इस सफल लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई भाईजी.
इसके साथ ही, आदरणीय़ शरदिन्दु जी ने बहुत ही मार्के की बात उठायी है. इसका अवश्य संज्ञान में लें.
शुभ-शुभ
वाह आदरणीय सुखिया मौन रहकर भी कितना कुछ कह रही है, बेहतरीन लघुकथा हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय रवि जी,
सुखिया के दुःख को बडे़ मर्मिक ढंग से उकेरा है...बधाई.
सादर.
रवी जी
आपने सुन्दर लोक कथा बुनी है i शिल्प बहुत अच्छा हैi
बेहतरीन लिखा है आपने , साधुवाद..
सच ही है ऐसे पति से , पति का न होना बेहतर. बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय रवि जी हार्दिक बधाई आपको
सच ये लघु कथा अन्दर तक झिंझोड़ देती है ...अपना सन्देश छोड़ने में कामयाब लघु कथा बहुत बढ़िया |आपको बधाई आ० रवि प्रभाकर जी |
kuchh log gaali hote hain jeewan ke liye ,,,,,,,,,,,,,,,, achhhi lagi,,,,,,,,,,,, badhai..............
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