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जय-जय कन्हैया लाल की.. (नवगीत) //--सौरभ

लिख रही हैं यातनायें
अनुभवों से
लघुकथायें -
मौसम-घड़ी-दिक्काल की !
जय-जय कन्हैया लाल की !!

शासकों के चोंचले हैं   
लोग गोवर्द्धन उठायें
हम लुकाठी
ले खड़े हैं
चोंच में आकाश पायें

शातिर सदा पद
इन्द्र का
जो सोचता बस चाल की..
जय-जय कन्हैया लाल की !!

अब उफनती
है न जमुना
कालिया मथता अड़ा है
चेतना लुंठित-बलत्कृत
देह-मन
लथपथ पड़ा है  

कुब्जा पड़ी हर घाट पर
किसको पड़ी है
ताल की !
जय-जय कन्हैया लाल की !!

नत कमर ले
शांत रहना
पीढ़ियों का सच यही है
कंस फिर पंचायतों में
भाग्य का षडयंत्र भी है.  

फिर से जरासंधी-मिलन,
चर्चा हुई है जाल की   
जय-जय कन्हैया लाल की !!

क्या गजब हो इस घड़ी

जो साध ले जग
वो हृदय हो
किन्तु यह भी है असंभव  
घात-प्रतिघाती सदय हो

जब पूतना की गोद है,
फिर क्या कहें ग्रहचाल की !
जय-जय कन्हैया लाल की !!
**********
-सौरभ

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2014 at 8:01pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आपने एक पाठक के तौर पर इस नवगीत के मर्म को छूआ है. आपकी बातें अक्षरशः सही हैं.
सादर धन्यवाद

Comment by विजय मिश्र on August 19, 2014 at 3:39pm
जय जय कन्हैयालाल की , सौरभजी ,

"क्या गजब हो इस घड़ी
जो साध ले जग
वो हृदय हो
किन्तु यह भी है असंभव
घात-प्रतिघाती सदय हो |" ---बहुत उत्कट भाव |
- कृष्णाष्टमी की अनन्य शुभकामनाएँ |
Comment by kalpna mishra bajpai on August 18, 2014 at 8:49pm

नत कमर ले 
शांत रहना 
पीढ़ियों का सच यही है 
कंस फिर पंचायतों में 
भाग्य का षडयंत्र भी है.  ...................... सुंदरम ........ आप को बहुत बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 8:22pm

द्वापर युग की तुलना आज से वह भी बिलकुल सहज आज के हालात से मेल खाती हुई। आपका अभिनंदन सर!

Comment by Shyam Narain Verma on August 18, 2014 at 12:09pm
" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. "
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 17, 2014 at 9:13pm

आदरणीय

नव गीत में

है प्रतीक मिथ के

है विसंगति और पीड़ा

याद हरि  गोपाल की

जय कन्हैया लाल की     i       सादर i

Comment by Satyanarayan Singh on August 17, 2014 at 6:08pm

नत कमर ले 
शांत रहना 
पीढ़ियों का सच यही है 
कंस फिर पंचायतों में 
भाग्य का षडयंत्र भी है.  

फिर से जरासंधी-मिलन, 
चर्चा हुई है जाल की   
जय-जय कन्हैया लाल की !!

    द्वापर एवं  वर्तमान  की परिस्थितियों में आज भी कितना साम्य है केवल पात्र  बदल गए हैं बस!  द्वापर काल की कुछ घटनाओं को बिम्बित करते इस  सुन्दर  नवगीत  हेतु हार्दिक बधाई एवं जन्माष्टमी की शुभ कामनाएं परम आदरणीय 

सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 17, 2014 at 5:45pm

जन्माष्टमी पर्व पर ऐतिहासिक द्वापर की घटनाओं को इंगित करते हुए वर्तमान हालात पर नवगीत रचना के माध्यम से 

चिंतन हुआ है | उस समय तो अधर्म बढ़ने पर महाभारत हो गया पुनः धर्म की स्थापना हो गयी | पर आज जरासंधी मिलन 

के जाल को काटने और कुब्जा को राहत प्रदान करने हेतु पुनः ऐसे ही महापुरुष का अभी तक इन्तजार ही है |

बहुत सुदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 3:19pm

आदरणीय गिरिराजभाईजी, पौराणिक कथाओं का बिम्बात्मक प्रयोग होता रहा है. आपको यह नवगीत रुचिकर लगा यह जानना मुझे भी संतोष दे रहा है.
आपका सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 3:12pm

भाई रामशिरोमणीजी, आपकी रचनाधर्मिता से हम अवगत हैं.

आपने इस नवगीत के मर्म को मान दिया है, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद.

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