लिख रही हैं यातनायें
अनुभवों से
लघुकथायें -
मौसम-घड़ी-दिक्काल की !
जय-जय कन्हैया लाल की !!
शासकों के चोंचले हैं
लोग गोवर्द्धन उठायें
हम लुकाठी
ले खड़े हैं
चोंच में आकाश पायें
शातिर सदा पद
इन्द्र का
जो सोचता बस चाल की..
जय-जय कन्हैया लाल की !!
अब उफनती
है न जमुना
कालिया मथता अड़ा है
चेतना लुंठित-बलत्कृत
देह-मन
लथपथ पड़ा है
कुब्जा पड़ी हर घाट पर
किसको पड़ी है
ताल की !
जय-जय कन्हैया लाल की !!
नत कमर ले
शांत रहना
पीढ़ियों का सच यही है
कंस फिर पंचायतों में
भाग्य का षडयंत्र भी है.
फिर से जरासंधी-मिलन,
चर्चा हुई है जाल की
जय-जय कन्हैया लाल की !!
क्या गजब हो इस घड़ी
जो साध ले जग
वो हृदय हो
किन्तु यह भी है असंभव
घात-प्रतिघाती सदय हो
जब पूतना की गोद है,
फिर क्या कहें ग्रहचाल की !
जय-जय कन्हैया लाल की !!
**********
-सौरभ
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आपने एक पाठक के तौर पर इस नवगीत के मर्म को छूआ है. आपकी बातें अक्षरशः सही हैं.
सादर धन्यवाद
नत कमर ले
शांत रहना
पीढ़ियों का सच यही है
कंस फिर पंचायतों में
भाग्य का षडयंत्र भी है. ...................... सुंदरम ........ आप को बहुत बधाई
द्वापर युग की तुलना आज से वह भी बिलकुल सहज आज के हालात से मेल खाती हुई। आपका अभिनंदन सर!
" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. " |
आदरणीय
नव गीत में
है प्रतीक मिथ के
है विसंगति और पीड़ा
याद हरि गोपाल की
जय कन्हैया लाल की i सादर i
नत कमर ले
शांत रहना
पीढ़ियों का सच यही है
कंस फिर पंचायतों में
भाग्य का षडयंत्र भी है.
फिर से जरासंधी-मिलन,
चर्चा हुई है जाल की
जय-जय कन्हैया लाल की !!
द्वापर एवं वर्तमान की परिस्थितियों में आज भी कितना साम्य है केवल पात्र बदल गए हैं बस! द्वापर काल की कुछ घटनाओं को बिम्बित करते इस सुन्दर नवगीत हेतु हार्दिक बधाई एवं जन्माष्टमी की शुभ कामनाएं परम आदरणीय
सादर
जन्माष्टमी पर्व पर ऐतिहासिक द्वापर की घटनाओं को इंगित करते हुए वर्तमान हालात पर नवगीत रचना के माध्यम से
चिंतन हुआ है | उस समय तो अधर्म बढ़ने पर महाभारत हो गया पुनः धर्म की स्थापना हो गयी | पर आज जरासंधी मिलन
के जाल को काटने और कुब्जा को राहत प्रदान करने हेतु पुनः ऐसे ही महापुरुष का अभी तक इन्तजार ही है |
बहुत सुदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय |
आदरणीय गिरिराजभाईजी, पौराणिक कथाओं का बिम्बात्मक प्रयोग होता रहा है. आपको यह नवगीत रुचिकर लगा यह जानना मुझे भी संतोष दे रहा है.
आपका सादर धन्यवाद
भाई रामशिरोमणीजी, आपकी रचनाधर्मिता से हम अवगत हैं.
आपने इस नवगीत के मर्म को मान दिया है, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद.
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