खुद का भी अहसास लिखो!
एक मुकम्मल प्यास लिखो!!
उससे इतनी दूरी क्यों !
उसको खुद के पास लिखो !!
खाली गर बैठे हो तुम!
खुद का ही इतिहास लिखो !!
गलती उसकी बतलाना !
खुद का भी उपहास लिखो!!
हे ईश्वर ऊब गया हूँ!
मेरा भी अवकाश लिखो!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीया सविता जी
वाह बहुत खूब .. शानदार ग़ज़ल कही रामशिरोमणि जी बधाई
आदरणीय राम शिरोमणि जी ..आपकी यह ग़ज़ल बेहद पसंद आयी बस आखरी अशार गुनगुनाने में थोड़ी रुकावट महसूस हुई ..इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी
मुझे आपकी ये ग़ज़ल बहुत पसंद आयी...
दिली मुबारकबाद इस सुन्दर ग़ज़ल पर
आदरणीय भईया राम शिरोमणि जी....
आपने लिखने के बहुत अच्छे अच्छे सुझाव दिये हैं........
सुन्दर रचना सादर बधाई
क्या बात !! वाह
आदरणीय भाई राम शिरोमणि जी , बहुत सुंदर गजल हुई है लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।
गजल बहुत सुंदर कही है आदरणीय राम शिरोमणि जी, बहुत बहुत बधाई आपको।
बहुत बढ़िया
भाई शिज्जू जी, अवकाश का उक्त शेर में लाक्षणिक प्रयोग हुआ है.
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