माँ सोनी के कमरे से खूब रोने चीखने की आवाजें आ रही थी, १४ साल की राधा भयभीत हो रसोई में दुबकी रही, जब तक पिता के बाहर जाने की आहट ना सुनी ! बाहर बने मंदिर से पिता हरी की दुर्गा स्तुति की ओजस्वी आवाज गूंजने लगी! भक्तों की "हरी महाराज की जय" के नारे से सोनी की सिसकियाँ दब गयी! पिता के बाहर जाते ही माँ से जा लिपट बोली "माँ क्यों सहती हो?" सोनी घर के मंदिर में बिराजमान सीता की मूर्ति देख मुस्करा दी! अपने घाव पर मलहम लगाते हुए बोली, "मेरा पति और तेरा पिता हैं, तू बहुत छोटी है, नहीं समझेगी|"
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सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
महिमा sis आभारी है हम ...सहीं कहा आपने माँ का दर्द बेटियां ही तो समझती है
सादर नमस्ते आदरणीय विजय भैया .......अपने कहानी को समय दिया और मर्म को समझा आभार आपका व्यक्त करते है यूँ ही अपना स्नेह बनाये रक्खें
आदरणीय गोपाल चाचाजी सादर नमस्ते............दिल की गहराइयों से आभार आपका
राजेश दी सादर नमस्ते ....ओह ऐसी परम्पराएँ आज भी चल रही है दुखद बहुत ज्यादा ही दुखद ! तहेदिल से आभार दीदी जो आपको कहानी पसंद आई हमारी
पवन बेटा शुक्रिया आपका तहेदिल से
बहुत ही हर्द्यस्पर्शी सच्ची तस्वीर .. बेटियाँ हमेशा से माँ के दर्द को समझती हैं और भावनात्मक संबल भी देती हैं ...बहुत -२ बधाई
आदरणीय
राजेश कुमारी जी ने जो विचार रखे i उससे पूर्ण सहमति है i
माँ समझती है बच्ची छोटी है ,किन्तु उसका ये पूछना "माँ क्यूँ सहती हो ?"वक़्त बदलने ,परंपरा बदलने ,अन्याय के खिलाफ़ आवाज उठाने की तरफ एक इशारा है|और ये बदलाव धीरे धीरे समाज में दिखाई भी देने लगा है ....अभी दो तीन दिन पहले गढ़वाल की एक परंपरा की बात हो रही थी जिसमे स्त्री पूरे दिन व्रत रख कर शाम को पति के चरण धोने वाले पानी से व्रत तोडती है ...वही पति अगले दिन उसे मारता पीटता है अतः आज कल की पढ़ी लिखी लड़कियां क्यूँ इस परंपरा को चलाएंगी ?और न ही चलानी चाहिए विरोध करना चाहिए ,आपकी ये लघु कथा बहुत से सवाल खड़े करती है ,जबाब हमे ही ढूढने हैं ,बधाई आपको प्रिय सविता जी.
मार्मिक भावों से परिपूर्ण .....
सुन्दर रचना ...... सादर बधाई!
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