खेतों के दरके सीने पर बादल बनकर आ रामा
होठों के तपते मरुथल पर छागल बनकर आ रामा
बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा
भक्ति युगों से दीवानी है राधा मीरा के जैसी
मन से मन मिल जाये अपना पागल बनकर आ रामा
दीप बुझे हैं आशाओं के रात घनेरी है गम की
प्राची से उजली किरनों का आँचल बनकर आ रामा
छप्पन भोगों के लालच में क्यूं पत्थर बन बैठा है
भूखों की रीती थाली में चावल बनकर आ रामा
सूख चुके हैं बरगद-पीपल मानवता ओ करुणा के
मन की बंजर धरती पर नव कोंपल बनकर आ रामा
चूता छप्पर सर पर कर्जा तिस पर बड़की का गौना
अंबार समस्याओं का है तू हल बनकर आ रामा
धनवानों को झुकती दुनिया बलवानों से डरता जग
निर्धन का धन बनकर निर्बल का बल बनकर आ रामा
इस जीवन में तो ‘खुरशीद’ बड़ा खल कामी है राघव
पिछले जन्मों के सत्कर्मों का फल बनकर आ रामा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय भाई खुर्शीद जी इस बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई ।
वाह...आ रामा...वाकई कितनी जरुरत हे ईश्वर ...कितना मार्मिक चित्रण करते अशआर ..
सूख चुके हैं बरगद-पीपल मानवता ओ करुणा के
मन की बंजर धरती पर नव कोंपल बनकर आ रामा
चूता छप्पर सर पर कर्जा तिस पर बड़की का गौना
अंबार समस्याओं का है तू हल बनकर आ रामा....बहुत बहुत बधाई मर्म स्पर्शी...ग़ज़ल
गजब!! क्या खूब शे'र कहे है आपने. दिली बधाई आपको आदरणीय खुर्शीद साहब
सूख चुके हैं बरगद-पीपल मानवता ओ करुणा के
मन की बंजर धरती पर नव कोंपल बनकर आ रामा ... की व्व्व्वाह्ह्ह ! निकले आपकी गजल पढ़कर बधाई आपको शानदार गज़ल के लिए सादर
बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा ".................बिलकुल सही कहा है
इस शानदार ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई सदर
" बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा "
आदरणीय खुर्शीद जी, आपकी अन्य ग़ज़लों की तरह यह ग़ज़ल भी बहुत अच्छी बन पडी है है।
बहुत बहुत बधाई।
बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा-----कमाल का शेर
छप्पन भोगों के लालच में क्यूं पत्थर बन बैठा है
भूखों की रीती थाली में चावल बनकर आ रामा---ला जबाब
आ० खुर्शीद खैराबादी जी ,इस ग़ज़ल को पढ़कर मन मुग्ध हूँ ...जबरदस्त भाव क्या कहने ....इसके साथ बह्र भी लिख देते तो समझने में और आसानी होती और समीक्षा बेहतर होती ...खैर आप ढेरों दाद कबूलें सादर
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