१.
क्या माली का हो गया, बाग़ों से अनुबंध ?
चित्र छपा है फूल का, शीशी में है गंध |
२.
चूल्हे न्यारे हो गये, आँगन में दीवार
बूढ़ी माँ ने मौन धर, बाँट लिए त्यौहार |
३.
मुल्ला जी देते रहे, पाँचों वक़्त अजान
उस मौला को भा गई, बच्चे की मुस्कान |
४.
एक तमाशा फिर हुआ, इन दंगों के बाद
जिनने फूंकी बस्तियाँ, बाँट रहें इमदाद |
५.
शीशाघर की मीन सा, यारों अपना हाल
दीवारों में क़ैद है, सुख के ओछे ताल |
६.
फिर राहत के नाम पर, आहत का उपहास
बुझती कैसे ओस से, रेगज़ार की प्यास |
७.
अभिनव युग की देखिये, आदिम पिछड़ी सोच
उसका उतना मान है, जो है जितना पोच |
८.
कर लो यदि इस दौर की, कुछ शर्तें स्वीकार
सहज मिलेगें साथियों, पैसा – कोठी –कार |
९.
सात समंदर पार के, मीत मिलाये नेट
एक मुहल्ले में रहें, हुई न अपनी भेंट |
१०.
तम ने तंबू गाड़कर, करली पक्की ठाँव
रस्ता भूली भोर भी, अँधियारे में गाँव |
११.
गुमटी पर है कायदे, ठेले पर है रूल
थोक भाव से बिक रहें, यारों आज उसूल |
१२.
चौराहे पर भीड़ है, अचरज में घनघोर
दीवारें हैं सामने, जायें अब किस ओर |
१३.
वो साँझी वो आरती, वो झालर वो दीप
मोती शाश्वत ज्ञान का, संस्कारों का सीप |
१४.
सोच रहा हूं देर से, हाथ लिये पतवार
जीवन दरिया रेत का, कैसे होगा पार |
१५.
बाहर बाहर चाशनी, भीतर भीतर खार
स्वार्थ तराजू पर तुले, रिश्तों का किरदार |
१६.
जबसे साँसों में घुली, तेरी प्रेम सुवास
तबसे जीवन बाग में, हर मौसम मधुमास |
१७.
एक परेवा बुर्ज पर, बैठा पंख पसार
आज उडूं मैं नाप लूं ,इस नभ का विस्तार |
१८.
मजदूरन की देह को, ताके ठेकेदार
रूह ढँकेगी बेबसी, कब तक पेट उघार
२०
एसी कूलर जून में, हरते हैं अवसाद
बरगद पीपल गाँव के, आते फिर भी याद |
२१ .
बरगद-पीपल-नीम की, शीतल गहरी छाँव
मीठा पानी कूप का, स्वर्ग धरा पर गाँव |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मंच सभी प्रबुद्ध अग्रजों आदरणीय उपाध्याय सा.,आदरणीय भंडारी सा.,आदरणीय अखिलेश जी ,आदरणीय सत्य नारायण जी ,आद .जितेंदर जी , आदरणीय आशुतोष जी ,आद.नीरज जी , आद.हरिवल्लभ जी ,आद.अरुण निगम सा. आदरणीया राजेश कुमारी जी , आद.पवन जी ,आद.विवेक झा सा. और आदरणीय विजशंकर सा. आप सभी का सादर आभार |
छुट्टियों में गाँव चले जाने और दीपावली की सफाई में गृहलक्ष्मी का हाथ बंटाने के अभियान के चलते काफ़ी समय मंच पर अनुपस्थित रहा ,जिसके चलते कई अच्छे आयोजनों में शिरकत नहीं कर पाया |क्षमा याचना के साथ पुनः मंच की सेवा में हाजिर हूं |आशा है आप सभी का स्नेह और आशीर्वाद पूर्ववत मुझे मिलता रहेगा |स्नेहाकांक्षी 'खुरशीद'
आदरणीय खुर्शीद भाई , वर्तमान सामाजिक स्थितियों को खूब सूरती से दोहों में पिरोया है आपने , सभी दोहे लाजवाब हैं | आपको हार्दिक बधाइयां |
आदरणीय खुर्शीद जी
बहुत ही सुंदर और सार्थक दोहे रचे हैं, हार्दिक बधाई।
रूह ढँकेगी बेबसी, कब तक पेट उघार,,,,, ,,,,, आदरणीय कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया कि एक मज़बूर के तन को आत्मा ढकेगी ... कैसे?
सादर
इन सारगर्भित दोहों हेतु हार्दिक बधाई आ. खुर्शीद जी
बहुत सारे, हर तरफ हर विषय पर दोहे. बहुत -२ बधाई आदरणीय खुर्शीद साहब
आदरणीय खुर्शीद जी ..सभी दोहे एक से बढ़कर एक ..हमारे चारो तरफ के हर नज़ारे को , हर बात को आपने इतनी खूबसूरती से दोहों के माध्यम से रख दिया ..उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है ..बेहतरीन ..मेरी हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें सादर
वाह bahut सुंदर दोहे/
वाह वाह अति सुन्दर सरस एवं तीक्ष्ण प्रभाव छोड़ते श्रेष्ठ दोहे आदरणीय Khursheed khairadi साहब,,,
तम ने तंबू गाड़कर, करली पक्की ठाँव
रस्ता भूली भोर भी, अँधियारे में गाँव |
गुमटी पर है कायदे, ठेले पर है रूल
थोक भाव से बिक रहें, यारों आज उसूल |
चौराहे पर भीड़ है, अचरज में घनघोर
दीवारें हैं सामने, जायें अब किस ओर |
बहुत सरस...एक से बढ़कर एक..दोहे बधाई आपको .
वाह... वाह और सिर्फ वाह ....इन अप्रतिम दोहों के लिए ..हर दोहे में एक से बढ़कर एक भाव आज के समाज पर सटीक कटाक्ष भी
ढेरों बधाईयाँ स्वीकारें आ० खुर्शीद खैरादी जी .
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