गली में खेलती वो लड़की
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गली में खेलती वो लड़की
कई आँखों के केंद्र में है |
कुछ आँखों के लिए वो सरसरी भर है
कुछ दूरबीन लगाए बैठी हैं
देखती रहती हैं
उसकी हर छोटी-बड़ी चपलता
कुछ आँखों के लिए वो किरकिरी है
लगातार बदलती हवा का
दुष्परिणाम
इतनी बड़ी लड़की का गली में खेलना..
मतलब, उसे गलत दिशा में धकेलना है !
अच्छा नहीं होता
लड़कियों को इतनी छूट का मिलना
इसीकारण, उसकी माँ उसे देती रहती है नसीहतों के घूँट |
कुछ आँखे चिंतातुर हैं
इन स्थितियों के विरुद्ध
रोकना नहीं चाहतीं
हंसती-खेलती लड़की को
वो प्रहरी की तरह आगे-पीछे रहना चाहती हैं |
आखिर कितनी लड़कियाँ गली में खेल पाती हैं ?
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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
इस रचना के लिए हार्दिक बढ़ाई स्वीकार करें ...सोचने को विवश करती शानदार रचना सादर
इस रचना के आलोक में प्रयासरत रहें.. उम्दा कहन.. उम्दा संप्रेषण..
शुभ-शुभ
विषय का चयन अच्छा है i प्रयास अच्छा है और अच्छा है सन्देश i
उत्तम रचना के लिये तहेदिल से शुक्रिया राजेश जी आपको
इस अच्छी रचना के लिए बधाई।
बहुत अच्छा विषय चयन ...विचारणीय है ...तथा इस पर आपका प्रयास भी सराहनीय है बहुत- बहुत बधाई आपको सोमेश जी
वाह !!! बहुत सुन्दर रचना आदरणीय बहुत २ बधाई
रचना पढ़ने -पसंद करने के लिए साधुवाद ,विषय -चयन अवश्य मेरा है पर रचना को कविता बनाने के लिए आदरणीय सौरभ पांडे जी के मार्गदर्शन का विशेष योगदान हैं |इसलिए बधाई और साधुवाद उनके चरणों में |
" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. " |
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