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कहानी : मस्जिद का स्पीकर

मस्जिद के स्पीकर से उठने वाले शोर से वो परेशान थे |सुबह सोते वक्त ,दोपहर में रामायण पढ़ते समय या फ़ोन पे गम्भीर हिंदूवादी चर्चा करते हुए उनके कामों में वो स्पीकर से उठने वाली आवज़ उनके कामों को बाधित कर देती |रिटायर्मेंट की पूंजी से यही एक आशियाना लिया था एक महीने पहले पर अब बेटा-बहू और वे स्वयं उलझन में थे कैसे बाहर निकले |कई बार मन हुआ कि अपने मत के संगठनों में शिकायत कर प्रशासनिक दबाब बनाएँ  पर हाल के दिल दहला देने वाले दंगों की यादों ने उनकी हिम्मत छीन ली |इतना पैसा तो था नहीं कि कहीं और चले जाएँ सो परिवार को धार्मिक-सहिष्णुता का पाठ पढ़ा चुप्प हो जाते |

एक दोपहर में पढ़ते-पढ़ते आँख लग गई कि एक घोषणा ने उनकीं नींद में खलल डाल दिया |

”दो साल का एक गोरा घुंघराले बाल वाला बच्चा भटकता हुआ मस्ज़िद के पास मिला है जिस किसी सज्जन का हो ले जाएँ “

उन्होंने इधर-उधर देखा –“रितिक कहाँ गया ? अभी तो यहीं खेल रहा था | बहू-बेटे को क्या जवाब देंगें “

घर का दरवाज़ा खुला था |वो भागते-भागते हांफते-हांफते ,अपने जर्जर घुटनों की परवाह किए बिना मस्जिद के खुले फाटक पर रुकते हैं |

रितिक जो मौलवी साहब के पास बैठा बिस्कुट खा  रहा था |उन्हें देखकर वो तोतली आवाज़ में कहता है –ददु

वो मस्ज़िद के फ़र्श पर बैठ जाते हैं और मौलवी साहब की बिटिया उनके लिए पानी पेश करती है | 61 वे पायदान पर पहली बार गैर-हिन्दू के हाथ का पानी पीते हैं |पानी के स्वाद में कोई फ़र्क नहीं था | वो पोते को घर ले आते हैं |अब अजान में उन्हें भजन सुनना आ गया था |

सोमेश कुमार

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 20, 2018 at 7:01pm
बहुत खूबसूरत
Comment by vandana on October 29, 2014 at 4:51am

कथा का सन्देश बहुत सुन्दर है आज भाई भाई के बीच यही अदृश्य दीवार है जो एक कदम बढाकर हलकी सी ठोकर से गिराई जा सकती है पूर्वाग्रह से मुक्त हो जाएँ तो न जाने कितनी ही समस्याओं से मुक्त हो जाएँ 

कमाल की कथा आदरणीय बहुत२ बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 28, 2014 at 10:36am

कई बार परिस्थितियाँ मनुष्य की आँखे खोल देती है तब पानी के स्वाद में कोई फर्क नजर नहीं आता और अजान में भी

भजन सुनाई देता है | बहुत सुंदर संदेश देती लघु कथा के लिए बहाई श्री सोमेश कुमार जी 

Comment by somesh kumar on October 26, 2014 at 9:04pm

aap jaise anubhvi aur vicharshil logon ka sneh aur aashish mila ,ye mera aur rchna dono ka subhagy hai 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 26, 2014 at 8:46pm

सोमेश जी

आपका  कथानक लाजवाब है और  आपकी  प्रस्तुति ने उसमे चार चाँद  लगाये i आपको मेरी ओर से इस रचना के लिए बधाई i

Comment by भुवन निस्तेज on October 26, 2014 at 8:26pm
बड़ी ही सार्थक रचना। बधाई स्वीकार करें।
Comment by भुवन निस्तेज on October 26, 2014 at 8:25pm
बड़ी ही सार्थक रचना। बधाई स्वीकार करें।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 26, 2014 at 8:28am

यह महज इंसानी फितरत है. हर धर्म,हर तबके, हर घर, हर परिवार की अपनी रीतियाँ अपने नियम और अनुशाशन होते है और मान्यताएं भी. आज के इस लगभग बनाबटी संवेदनशील समय में हर इंसान अपने परिवेश या अपने द्वारा बनाए गए वातावरण में, अपने तरीके से जीना चाहता है. जब कोई उसके तरीके को छीनना चाहता है या दखल देता है तो उसे तकलीफ होती है, किन्तु उसके द्वारा किसी को दखल हो. यह वो कभी नही सोच पाता. रही बात धर्मों की तो यह सब इंसानों ने ही बांटा है अपने ही तरीकें से. इस देश का चाहे हिन्दू , मुस्लिम,सिख इसाई या कोई भी धर्म हो सभी धर्म के लोग बहुत अच्छे व् पवित्र है..

आपने बहुत ही सुंदर विषय पर अपनी रचना साझा की है. बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय सोमेश जी

Comment by somesh kumar on October 25, 2014 at 11:26am

शुक्रिया शिज्जु शकुर जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 25, 2014 at 9:45am

आज के परिप्रेक्ष्य में आप ने सार्थक बात कही है आदरणीय सोमेश जी हर सम्प्रदाय की अपनी मान्यताएँ होती हैं, अपने नियम होते हैं जब आप अपनी तुलना किसी और से करते हैं तो समस्याएँ शुरू हो जाती हैं। इस रचना के लिये बहुत बहुत बधाई आपको

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