पीतल और ऐलुमिनियम के बर्तनों में वर्चस्व की लड़ाई होने लगी, आखिर तय हुआ कि चाँदी महाराज से निर्णय करवाया जाये कि कौन श्रेष्ठ है । पीतल ने कहा कि उसके बर्तनों में देवों को भोग लगाया जाता है, कुलीनजनों के पास उसका स्थान है जबकि ऐलुमिनियम के बर्तनों में झुग्गी-झोपड़ी के लोग खाते हैं और तो और इसका कटोरा भिखमंगे लेकर घूमते रहते हैं ।
ऐलुमिनियम अपने पक्ष में कोई विशेष दलील नहीं दे सका I चाँदी महाराज ने अपने निर्णय में कहा कि पीतल भरे हुए को भरता है जबकि ऐलुमिनियम भूखे को खिलाता है, अत: भूखे को खिलाने वाला हीसदैव श्रेष्ठ होता है ।
यह निर्णय सुनकर एक कोने में पड़ी 'पत्तल' मुस्कुरा उठी ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
श्रेष्ठता के मानक यदि इसी प्रकार निर्धारित किये जाएँ तो दुनिया की कितनी ही समस्याएं उदित ही न हो। पर हम तो बस यूँ ही चमक दमक में ही उलझे रहते हैं. कुँवर बेचैन की एक पंक्ति याद आ रही है :
यूँ तो हमको घोड़े के पैतालीस मतलब आते हैं
पर हम जब भी घोड़ा खरीदने जाते हैं,
गधा खरीद लाते हैं.
वैसे यह भी सही है कि हमने अभी मानक निर्धारित किये ही नहीं हैं। जब जैसा चाहा कर लिया , उसमें जो सुख है वह मानकीकरण में कहाँ है।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी इस चेतना जगाने वाली कथा के लिए।
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
आभार बैद्यनाथ सारथि जी।
सराहना हेतु आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी।
अंतिम पंक्ति पाठक के चेहरे पर भी मुस्कान लाने में सक्षम है जो इस लघु कथा का सार है पत्तल का बिम्ब बहुत ऊँचाई पर ले गया इस लघु कथा को आ० योगराज जी की बात का पूर्णतः समर्थन करती हूँ हार्दिक बधाई आपको आ० गणेश बागी जी इस श्रेष्ठ लघु कथा हेतु |
वाह आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी लघु कथा अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल है। कथा का चरम पाठक को एक सोच और संतोष प्रदान करता है। हार्दिक बधाई सर।
'पत्तल' मुस्कुरा उठी' इसी बात मैं कई रहस्य छुपे हुये है , सुन्दर रचना आपको हार्दिक बधाई ।
अति सुंदर
sunder ,aur dil ko chune vali spsth sndeshpurn rchna
लघुकथा सम्राट द्वारा लघुकथा पर प्राप्त इस टिप्पणी पर किसे गर्व नहीं होगा, आपका आशीर्वाद स्वरुप टिप्पणी इस लघुकथा पर प्राप्त हुई, लेखन कर्म सार्थक प्रतीत होने लगा, बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।
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