For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पाकर आभास

अपनी ही कुक्षि में

अयाचित  अप्रत्याशित

मेरी खल उपस्थिति का

सह्म गयी माँ !

*        *        *

 

हतप्रभ ! स्तब्ध ! मौन !

आया यह पातक कौन ?

जार-जार माँ रोई

पछताई ,सोयी, खोयी

‘पातकी तू डर

इसी कुक्षि में ही मर

मैं भी मरूं साथ

तेरे सर्वांग समेत

धिक् ! हाय उर्वर खेत’

*        *        *

 

 

पितु हुए सन्न !

क्षद्म अवसन्न

उनका क्या गया

चिंता का आवरण

कर लिया वरण

धूर्त अंतर्मन करता अट्टहास

नहीं उसमे प्रिय की

मोहक सुवास

हँसता वह खल

खल-खल, खल-खल

गर्भहन्ता नराधम निर्लज्ज

बोला – ‘मर या मार

यदि चाहती उद्धार‘

*        *        *

 

बावली माँ पागल

अपने से हारी हुयी

अन्तस मे अंधड़, तूफ़ान

हाहाकार -----

ममता ही दे आज

निज अंडज को मार

नहीं स्वीकार

प्रतिकार  ! प्रतिकार !

*        *        *

 

‘निर्लज्ज, बेहया, कुलटा

वार-कन्या, पुंश्चली, स्वैरिणी

कलंकिनी, धुर व्यभिचारिणी’

क्या-क्या उपमान बनी

स्नेह ममता में सनी

वह मेरी वीरा ---

वत्सला अधीरा

दुर्धर्ष योद्धा

मेरी पयस्विनी

मातः यशस्विनी

जो स्वयं जली मुझको जिलाने को

पद, पदत्राण खाई मुझको खिलाने को  

जिसने सहेजा मुझे जीवन भर,

भर अंक

पर मिटा पाई नहीं मेरा कलंक

*        *        *

 

 

नीच मै व्यभिचारज 

वर्णसंकर, दोगला

रोता मै जार-जार

जारज पुत्र, कौलटेय

मेरा था पाप क्या !

गत जन्म शाप क्या ?

ईश परिताप क्या  ?

मानवी कलाप क्या ?

क्या,  क्या,  क्या ?

 

(अप्रकाशित /मौलिक )

Views: 730

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 7:57pm

योगेन्द्र जी

आपका आभार i

Comment by Hari Prakash Dubey on November 20, 2014 at 5:44pm

अब मैं जब आप लोगों को पढ़ रहा हूँ तो लगता है बहुत बड़ा संसार है ये ,बहुत ही शानदार रचना है आदरणीय  डॉ गोपाल कृष्ण श्रीवास्तव जी ,सादर बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 20, 2014 at 2:39pm

दुनिया के लिए कितनी भी अवांछित हो संतान माँ के लिए कभी नहीं हो सकती कोई माँ उसकी हत्या का पाप नहीं कर सकती 

एक माँ के इन्हीं भावों को किस ख़ूबसूरती से उकेरा है रचना में निःशब्द हूँ बहुत लाजबाब रचना है बहुत- बहुत बधाई आपको आ० डॉ० गोपाल नारायण जी |  

Comment by Shyam Narain Verma on November 19, 2014 at 2:09pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... सादर बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2014 at 12:26pm

बावली माँ पागल

अपने से हारी हुयी

अन्तस मे अंधड़, तूफ़ान

हाहाकार -----

ममता ही दे आज

निज अंडज को मार

नहीं स्वीकार

प्रतिकार  ! प्रतिकार !-----भले समाज स्वीकारे या नहीं | पर माँ अपने गर्भ में आई संतान को मारना स्वीकार नहीं कर सकती | यही तो हर माँ की ममता है | बहुत ही भावपूर्ण रचना रची है  आपने  आद डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी | बहुत बहुत बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 12:04pm

बहुत ही प्रभावशाली रचना है आ० डॉ गोपाल कृष्ण श्रीवास्तव जी। हार्दिक बधाई प्रेषित है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2014 at 10:01am

आदरणीय बड़े भाई , विषय का चुनाव भी हृदयविदारक है और आपकी रचना भी ! हृदय से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by somesh kumar on November 19, 2014 at 8:44am

आदरणीय ,निसंदेह रचना सार्थक एवं छंद आबद्ध है परंतु तत्सम  या कम प्रचलन के शब्दों के कारण ,कविता का भावार्थ-ग्रहण करने में कठिनाई आ रही है |आप से आग्रह है कि अपने अनुजों एवं विद्यार्थियों को ध्यान में रखते हुए ,ऐसी रचना के साथ कठिन या कम-प्रचलन के शब्दों का अर्थ देनें की कृपा करें |

निवेदन पूर्वक 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 19, 2014 at 7:41am
हृदयस्पर्शी रचना है सर लाजवाब प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service