उसने सागर से कहा “पानी दो बहुत प्यासा हूँ”
सागर बोला -“रोज पीते हो खाली हो गया हूँ”|
नदिया से कहा “पानी दो बहुत प्यासा हूँ” नदिया ने कहा “आगे जा रही हूँ पसीना बहाने वाले प्यासों के पास;
पीछे लौटना मेरी नियति नहीं है”|
कुए से कहा “पानी दो प्यासा हूँ गला सूख रहा है मर जाऊँगा ”
कुँए ने कहा “मैं स्वाभिमानी हूँ प्यासे के पास नहीं जाता प्यासा मेरे पास आता है”|
पास बहते नाले से कहा "तू ही पिला दे यार" उसने कहा “पहले ही तू मुझे बहुत गन्दा कर चुका है”|
"कोई मत पिलाओ हरामखोरों पर वो तो पिलाएगी ही रात की मार भूली थोड़े ही होगी ” ...कुछ होश आते ही अधखुली आँखों से इधर-उधर देखता है|
कौने में चूल्हा ठण्ड से कंपकंपा रहा है |बोला “नहीं पिलाएगी चली गई है, तेरी प्यास से बड़ी तेरे बच्चों की प्यास थी”!!!
नई रानी लालपरी नाच रही है अलमारी में हाथ के इशारे से बुला रही है “अब मैं ही बची हूँ.... चला आ तेरा गम भुला दूँ ”... और वो लडखडाते कदमों से उसकी और चल देता है...
चुल्लूभर पानी लिए पास रखी छोटी कटोरी ठहाका मारकर हँसती है ..... "जा जा फिर भी अंत में तू मेरे पास ही आएगा" |
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(मौखिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीया राजेश जी, एक साथ कई बाते आयीं हैं, किन्तु पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकी .
कोई संभाले या न संभाले किन्तु पत्नी तो संभालेगी ही ----- किन्तु यहाँ पत्नी भी बच्चों के कारण छोड़ जाती है .
अलमारी में लालपरी ---- कथा जो वातावरण बना रही है उसमे आलमारी सोच में आना ही नहीं चाहिए, दूसरी बात ... कोई बेवडा लालपरी के होते पानी के लिए भटक ही नहीं सकता, पहले लालपरी को जान से मारेगा :-) उसके बाद ही कुछ और .
वैसे बढ़िया प्रयास हुआ है, बधाई .
कौने = कोने कर लीजियेगा .
समाज में व्याप्त खुदगर्जी को प्यास के माध्यम से एवं कुसंस्कारों को कटोरी और लालपरी जैसे सुन्दर बिम्ब और दबी कुचली गृहणी की बच्चों के प्रति चेतना में सब कुछ समेटती लघुकथा..एक उपन्यास के जैसा विस्तार लिए है...धन्य है लेखनी..बधाई.
सामाजिक विसंगति को व्यक्त करती बेहतरीन रचना... आपको बधाई
विशेष रूप से इन पंक्तियों के लिए
चुल्लूभर पानी लिए पास रखी छोटी कटोरी ठहाका मारकर हँसती है ..... "जा जा फिर भी अंत में तू मेरे पास ही आएगा" |
सोमेश कुमार जी, बढ़िया शायरी की है ,आपके द्वारा अनुमोदन पाकर रचना सार्थक हुई बहुत- बहुत आभार आपका.
प्रिय प्रतिभा जी ,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ आपका अनुमोदन मेरी आश्वस्ति के साथ उत्साह वर्धक भी है दिल से आभार आपका .
एक वो ही है जो वफा करती है -मुझसे
मैं बरबाद हूँ मगर सीने से लिपट जाती है
पहले जली छाती मेरी ,फिर मेरा घर जला
बेहया है फिर भी मुझे रोज़ पास बुलाती है |
आपकी सुंदर-अर्थपूर्ण रचना से प्रेरित ,कोई अतिशयोक्ति हुई हो तो क्षमा करें |संदेश-पूर्ण रचना के लिए विशेष बधाई
हरि प्रकाश दूबे जी,रचना पर आपकी सार्थक टिपण्णी पाकर मैं उत्साहित हूँ रचना सफल हो गई हार्दिक आभार.
आदरणीया राजेश कुमारी जी ,सुन्दर और प्रेरणादायक रचना हार्दिक बधाई !
आ० श्याम नारायण जी ,लघुकथा को आपका अनुमोदन मिला लिखना सफल हुआ बहुत बहुत आभार सादर.
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