२१२२ २१२२ २१२
तुमने पुरखों की हवेली बेच दी
शान दुःख सुख की सहेली बेच दी
भूख दौलत की मिटाने के लिए
मौत को दुल्हन नवेली बेच दी
जिस्म के बाजार ऊंचे दाम थे
गाँव की राधा चमेली बेच दी
बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर
तुमने बच्चों की हथेली बेच दी
गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन
प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
आदरणीय गुमनाम भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , सभी अश आर बढिया हुये हैं , आपको दिली बधाइयाँ ।
आदरणीय शिज्जु भाई जी से सहमत हूँ -- दुख लिखें तो मात्रा 2 लेते हैं और विसर्ग लगा के अगर आप दुःख लिखते हैं तो आपको मात्रा 21 लेना चाहिये । सुधार कर लीजियेगा !!
बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर
तुमने बच्चों की हथेली बेच दी
गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन
प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी
बेहद खूबसूरत भावों से सजी इस ग़ज़ल की पेशकश पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
आदरणीय गुमनाम साहब .अनूठी ग़ज़ल है |सादर अभिनन्दन
लाजवाब प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकारेँ |
गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन
प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी
वो खोती हुई भेली और राब आप ने याद दिला दिया ,बधाई
आदरणीय गुमनाम जी हर शेर लाजवाब है हर शेर के लिये दाद हाज़िर है।
मगर एक जगह शंका है, जहाँ तक मैं जानता हूँ दुःख का वज्न 21 होता है और दुख का 2 ।
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