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ग़ज़ल - गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब

ग़ज़ल श्री गिरिराज भंडारी जी की नज्र ...


गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब
चलो दिल ने, कहा इतना तो माना अब

न काम आया है उनका मुस्कुराना अब
यकीनन चाल तो थी कातिलाना .... अब ?

ये दिल तो उन पे अब फिसला के तब फिसला
ये तय जानो, नहीं इसका ठिकाना अब


जो दानिशवर थे सब नादान ठहरे हैं
ये किसका दर है, तुमको क्या बताना अब

ये मौसम खूबसूरत था ये माना पर
वो आये तो हुआ है शायराना अब

तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब

ग़ज़ल की बादशाहत छोड़ दी हमने
ये हमसे चाहता क्या है जमाना अब

१२२२        १२२२       १२२२
मौलिक व अप्रकाशित

(आज महीनों बाद OBO के दर पर आया, और गिरिराज भंडारी जी की एक ग़ज़ल पर कुछ कहते-कहते, जेह्न में उसी जमीन पर कुछ अशआर तैयार हो गए.... ख्वाहिश जगी कि ग़ज़ल मुकम्मल भी हो सकती है ..यूं तो फिल्बदी कहने की आदत नहीं है लेकिन करीब 7-8 महीने बाद कोई मुकम्मल ग़ज़ल हुई है तो अब जो कुछ तैयार हुआ है आपके हवाले यहीं छोड़े जा रहा हूँ ... )

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 5:57pm

आदरणीय वीनस जी सुन्दर  रचना , बेहतरीन गजल बधाई आपको !

Comment by vandana on December 25, 2014 at 4:47am

तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है 
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब

बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2014 at 3:49am
वाह ! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल। बधाई ,आदरणीय वीनस केसरी जी , सादर।
Comment by वीनस केसरी on December 24, 2014 at 11:22pm

ग़ज़ल को इतनी मुहब्बत नवाज़ने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by ajay sharma on December 24, 2014 at 10:37pm

तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है 
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब..................wah wah wah wah 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 10:07pm

आदरणीय वीनस सर इस बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई ... एक एक अशआर उम्दा है .क्या खूब कहा है-

गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब 
चलो दिल ने, कहा इतना तो माना अब........... बेहतरीन मतला 

न काम आया है उनका मुस्कुराना अब 
यकीनन चाल तो थी कातिलाना .... अब ? .....अच्छा अशआर 

ये दिल तो उन पे अब फिसला के तब फिसला 
ये तय जानो, नहीं इसका ठिकाना अब ..................उम्दा शेर खूब कहा है ...दिल .....अब फिसला के तब फिसला 


जो दानिशवर थे सब नादान ठहरे हैं
ये किसका दर है, तुमको क्या बताना अब.... बेहतरीन अशआर 

ये मौसम खूबसूरत था ये माना पर 
वो आये तो हुआ है शायराना अब .... गज़ब का शेर वाह्ह्ह्ह 

तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है 
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब.... वाह्ह्ह्हह्ह्ह 

ग़ज़ल की बादशाहत छोड़ दी हमने
ये हमसे चाहता क्या है जमाना अब ........ कमाल का अशआर इस शेर पर लाखों दाद कुबूल कीजिये ... सादर 

Comment by दिनेश कुमार on December 24, 2014 at 9:51pm
क्या कहना वीनस भाई, बेहतरीन गजल हुई है। वाह
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 24, 2014 at 7:19pm
तुम्हारा मुन्तजिर इस तरह जिन्दा है
ये दिल है बस लहू का कारखाना अब

ग़ज़ल की बादशाहत छोड़ दी हमने
ये हमसे चाहता क्या है जमाना अब वाह वाह वाह जनाब क्या खूब शे'र है
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 24, 2014 at 6:22pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बधाई

Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 2:57pm

ग़ज़ल की बादशाहत छोड़ दी हमने
ये हमसे चाहता क्या है जमाना अब 

आदरणीय वीनस जी ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर 

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