ग़ज़ल : शुभ सजीला आपका नव साल हो.
गर्व से उन्नत सभी का भाल हो.
शुभ सजीला आपका नव साल हो.
कामना मैं शुभ समर्पित कर रहा,
देश का गौरव बढ़े खुश हाल हो.
आसमां हो महरबां कुछ खेत पर,
पेट को इफरात रोटी दाल हो.
मुल्क के हर छोर में छाये अमन,
हो तरक्की देश मालामाल हो.
आदमी बस आदमी बनकर रहे,
जुल्म शोषण का न मायाजाल हो.
मन्दिरों औ मस्जिदों को जोड़ दें,
घोष जय धुन एक ही सुरताल हो.
भेद फिरकों का न हो इंसान में,
एक ऐसा भी सुनहरा काल हो.
**हरिवल्लभ शर्मा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय शिज्जू 'शकूर' साहब आपकी मार्गदर्शक टीप का आभार...आपने हमेशा प्रोत्साहित किया..हार्दिक शुक्रिया...मैंने गाना 'आइये मेहरवां" सुना था ..उसके अनुसार .म+हर+वां.1 2 2..समझ लिया था..जैसा आप गुनिजन राय देते हैं..सादर...तदनुसार बदला जा सकता है.
नववर्ष की शुभकामनाओं को साझा करती आपकी इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई आदरणीय हरिभाईजी.
कई-कई पहलुओं के माध्यम से शुभेच्छाएँ विदित हुई हैं.
अलबत्ता,
कामनाये शुभ समर्पित कर रहा,... . कौन ? इस कौन का उत्तर सानी में भी नहीं है. सो इस पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है.
नववर्ष मंगलमय हो और आपकी अपेक्षाएँ मूर्त हों.
सादर
आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा सर , नववर्ष के स्वागत में सुन्दर कामनायें ,इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
"आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा जी, सुन्दर कामनायें ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !
आदरणीय हरि वल्लभ भाई बहुत सुन्दर , नये साल की सुन्दर शुभकामनाओं के लिये आपका आभार , रचना के लिये बधाई , और मेरी ओर से भी नव वर्ष की मंगल कामनायें स्वीकार करें ।
नव साल में नव चाहत को सजोये यह ग़ज़ल अच्छी बन पड़ी है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा जी, शिज्जू भाई का इस्लाह काबिले गौर है .
वाह आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है सारे अशआर पसंद आये बस महरबां शब्द का जो वज्न आपने लिया है उसमें थोड़ा संशय है। क्योँकि महरबां या मेहरबाँ का वज्न 212 होता है।
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