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ग़ज़ल-दोस्ती कैसे निभाएं कोई पैमाना कहाँ है

(2122      2122      2122    2122)

दोस्ती कैसे  निभाएं  कोई   पैमाना  कहाँ  है

हीर रान्झू का नया सा आज अफ़साना कहाँ है

 

प्यार से ही जो बदल दे हर अदावत की फ़जा को

संत मुर्शिद सूफ़ी मौल़ा ऐसा  मस्ताना कहाँ है

 

ख़ुद गरज नेता वतन का तो करेंगे वो भला क्या

मार हक़ फिर  देखते हैं वो कि नजराना कहाँ है

 

अंजुमन में रिन्दों की भी बैठ कर देखें जरा हम

हाल सब का पूछते वो कोई अनजाना  कहाँ है

 

हर ख़ुशी कुर्बान कर दे खुद वतन के वास्ते जो

पासवां सरहद का ऐसा और   परवाना कहाँ है

 

बाँट दे मज़हव भले ही इंसान  को ही टोलियाँ में

थाम ले  गिरते हुए को वो तो बेगाना  कहाँ है

 

है इनायत जिस की हर दम और चारों ओर'कंवर'

 ढूंढ लें दैरो-हरम भी उसका दीवाना कहाँ है

 

(मौलिक व अप्रकाशित )    

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Comment by कंवर करतार on January 1, 2015 at 8:12pm

भाई सोमेश,ग़ज़ल की सराहना के लिए धन्याबाद I


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 8:02am

आदरणीय डॉ कंवर करतार खंदेह्ड़वी जी प्रयास हेतु बधाई, बाकी खुर्शीद जी ने तो कह ही दिया है

Comment by Hari Prakash Dubey on December 31, 2014 at 7:44pm

आदरणीय डॉoकंवर करतार खंदेह्ड़वी जी

ख़ुदगरज नेता इस वतन का करेंगे भला क्या

मार हक़ जो देखते हैं कि नजराना कहाँ है...बहुत खूब ,इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ! सादर 

Comment by khursheed khairadi on December 31, 2014 at 11:38am

आदरणीय करतार साहब खुबसूरत ग़ज़ल हुई है ,ढेरों दाद कबूल फरमावें |भावपक्ष काफ़ी प्रबल है 

तक्ती  लगभग सभी मिसरों में गड़बड़ा रही है  एक दो उदाहरण दे रहा हूं ,जिससे आप बाकि मिसरे भी देख लें |आशा है आप अन्यथा न लेंगे और मंच के अग्रजों की इस्लाह से और निखर जायेंगे |

कोई दोस्ती निभा सके वो ज़माना कहाँ है= 21-21  2-1-2  12   2-12 2  1-2 2

मोड़ दे जो कलाम से भी अदाबतों के तूफां = 2122 1212 2121 2122

संत सूफ़ी मुर्शिद मौल़ा  मस्ताना कहाँ है= 2122  22 22 22 2122 

कृपया मन में किसी प्रकार का नकारात्मक भाव न लाते हुये आप अनुज पर बड़े भाई की तरह स्नेह बनाये रखेंगे |सादर अभिनन्दन  

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 31, 2014 at 10:26am
बहुत खूब, सुन्दर। बधाई , आदरणीय डॉoकंवर करतार खंदेह्ड़वी जी , सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on December 31, 2014 at 10:14am

बहुत खूब .... शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ................

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 31, 2014 at 9:36am
बहुत सुन्दर गजल आदरणीय!

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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2014 at 12:59am

आदरणीय  डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी' जी इस सुन्दर भावपूर्ण रचना प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई 

रचना के शिल्प पर मंच के गुनिजन ही बताएँगे.

Comment by somesh kumar on December 30, 2014 at 11:24pm

शायद आपकी पहली गज़ल से गुज़र रह हूँ / हर शे'र  अच्छे लगे 

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