कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
उत्तर से आ रही है
लाल हवायें
जीभ लपलपाती
गर्म सदायें
हिमालय बदहवास बिलकुल बेदम है
हवा में आक्सीजन शायद कुछ कम है
दो कपोत हैं अब हर घर में रहते
गुटरगूं करते जाने क्या कहते !
एक है श्वेत दूसरा काला है
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
दर्पण हाथों से छूट रहे है
मखमल पर गिरकर टूट रहे है
खाली बाल्टी की कतारें लगी है
बिल्लियाँ रास्ता काट रही है
कुतिया कुत्ते को डांट रही है
लोहे में अछूट जंग लगने वाला है
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
काले कपडे में लोग घूम रहे है
मशान की हड्डियाँ चूम रहे है
दर्पण को सजी-बधू झांक रही है
माताएं उलटे बटन टांक रही है
झाड़ू पर पाँव रखे
डाईन खडी है
दूध कोई भेड़िया छलकाने वाला है
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
काली पहाडी के पीछे
नाचते है प्रेत
अंधियारी बाग़ में
जिन्न समवेत
खेतो में दूर कही रोते है स्यार
लकड़बग्घे आपस में करते है प्यार
बरगद में बत्तख करते है बीट
हंसती है मानवता मुर्दे को पीट
दुनिया के चेहरे पर
मकडी का जाला है
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
चमगादड़ झूलते है
घर की छतो से
प्रेत-वाहन जानते हम
इन्हें मुद्दतो से
टूटता है सन्नाटा उल्लू की चीख से
सारे अंग उसके है तंत्र के प्रतीक से
आँखों में दरिंदो के वही वहशत है
देश में मसान है बड़ी दहशत है
कौए की चोंच में
नाग फन वाला है !
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
हिमालय बदहवास बिलकुल बेदम है
हवा में आक्सीजन शायद कुछ कम है......
काले कपडे में लोग घूम रहे है
मशान की हड्डियाँ चूम रहे है....
कौए की चोंच में
नाग फन वाला है !
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?....आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर , बहुत ही सुन्दर , लाजवाब रचना है , हार्दिक बधाई आपको सर !
काली पहाडी के पीछे
नाचते है प्रेत
अंधियारी बाग़ में
जिन्न समवेत
खेतो में दूर कही रोते है स्यार
लकड़बग्घे आपस में करते है प्यार
बरगद में बत्तख करते है बीट
हंसती है मानवता मुर्दे को पीट
दुनिया के चेहरे पर
मकडी का जाला है
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
आदरणीय गोपालनारायण सर , भयभीत करती हुई सजीव रचना है |चित्रण का अच्छा निर्वाह हुआ है| सादर अभिनन्दन |
कोई नही जानता क्या होने वाला है ,फिर भी उम्मीदों का कायम उजाला है |
जो भी हो आदरणीय ,रचना बहुत प्रभावशाली एवं अर्थ-पूर्ण है |भीतर तक झकझोरने वाली इस रचना को प्रणाम
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