१२२२-१२२२-१२२२-१२२२
अना के ज़ोर से कमज़ोर रिश्ते टूट जाते हैं
ज़रा सी बाहमी टक्कर से शीशे टूट जाते हैं
गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी
गर आपस में उलझ जायें तो धागे टूट जाते हैं
बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो
ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं
किसी दर पर झुकाना सिर नहीं मंजूर हमको भी
करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं
तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यूं ज़र्रे
अगर गर्दिश में हो तारे सितारे टूट जाते हैं
चमन में बेटियों के वालिदों सा हाल है इनका
उठाकर तितलियों का भार पौधे टूट जाते हैं
शजर दिल का हिलाती है ग़मों की आँधियाँ जब जब
समर के रूप में ग़ज़लों के मिसरे टूट जाते हैं
अगर हम सोच को मैदान सा विस्तार दें यारों
दीवारें टूट जाती हैं दरीचे टूट जाते हैं
बग़ावत के फ़िसोसे सूझते हैं पेट भरने पर
अगर करने पड़े फ़ाक़े इरादे टूट जाते हैं
न बन यूं कोह चल आँसू बहाकर सोग कुछ कम कर
ग़मों के बोझ से तो अच्छे अच्छे टूट जाते हैं
सवेरा इसलिये ‘खुरशीद’ फिर लेकर चला आया
मुसल्सल तीरगी हो तो फ़रिश्ते टूट जाते हैं
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
कहो 'खुर्शीद' सी गज़लें, गज़ब लहजा सिखाती है
ग़ज़लगो तुम नहीं 'मिथिलेश' धोके टूट जाते है
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी .... बस कमाल हो गया है ......... एक एक अशआर कमाल है .... पढ़कर झूम गया हूँ ..... इस बह्र में मैंने जो बेहतरीन सर्वश्रेष्ट पांच गज़ले पढ़ी है ये उसमें से एक हो गई....दिल से दाद कुबूल कीजिये .... नमन
बेहतरीन गजल,,,,,,,,,,आ. खुर्शीद जी ,,,,,,बधाई|
शजर दिल का हिलाती है ग़मों की आँधियाँ जब जब
समर के रूप में ग़ज़लों के मिसरे टूट जाते हैं
न बन यूं कोह चल आँसू बहाकर सोग कुछ कम कर
ग़मों के बोझ से तो अच्छे अच्छे टूट जाते हैं
...हेर शेर उम्दा है पर ये दो मुझे बेहद पसंद आये ...आपकी इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..आदरणीय खुर्शीद जी
आदरणीय खुर्शीद भाई , मतले से मक्ते तक सभी अश आर बेहतरीन कहे हैं , पूरी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो
ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं
किसी दर पर झुकाना सिर नहीं मंजूर हमको भी
करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं
तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यूं ज़र्रे
अगर गर्दिश में हो तारे सितारे टूट जाते हैं
चमन में बेटियों के वालिदों सा हाल है इनका
उठाकर तितलियों का भार पौधे टूट जाते हैं
बग़ावत के फ़िसोसे सूझते हैं पेट भरने पr
अगर करने पड़े फ़ाक़े इरादे टूट जाते हैं
न बन यूं कोह चल आँसू बहाकर सोग कुछ कम कर
ग़मों के बोझ से तो अच्छे अच्छे टूट जाते हैं
- behtareen ashaar se labrej , kya baat hai !
सवेरा इसलिये ‘खुरशीद’ फिर लेकर चला आया
मुसल्सल तीरगी हो तो फ़रिश्ते टूट जाते हैं
बहुत ही सुन्दर , बधाई इस प्रस्तुति के लिए आदरणीय................. |
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