2122 1212 22
झूठ ही बन गया है आँचल क्या
धूप लगने लगी है अफ़्ज़ल क्या (अफ़्ज़ल –भला)
अक्ल की बंद खिड़कियाँ खोलो
टाट लगने लगा है मखमल क्या
जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज
दिल में कायम रहेगा ये कल क्या
किस्से कुछ और थे हकीकत और
ये रवायात बदलीं पल-पल क्या
छटपटाहट सी क्यूँ है चेहरे पर
मच उठी दिल में कोई हलचल क्या
फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर
आदतन हो गये हो निर्बल क्या
( मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी रचना को समय देने एवं सराहने के लिये मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ऐसा ही स्नेह आगे भी बना रहे ये इल्तिजा है।
जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज
दिल में कायम रहेगा ये कल क्या
फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर
आदतन हो गये हो निर्बल क्या ---- बहुत बढ़िया अशआर हुये हैं , आदरणीय शिज्जु भाई , दिली बधाइयाँ ।
बहुत खूब आदरणी शिज्जू भाईजी..
यानि कि, तरह के मिसरे ने आपको खूब रोमांचित कर रखा है. यह अच्छा है. ये ग़ज़ल भी वाकई अच्छी हुई है.
शुभ-शुभ
वाह..... बहुत खूब हर शेर लाजवाब..
जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज
दिल में कायम रहेगा ये कल क्या
हर शे'र काबिले-तारीफ़ है कोई समाजिक अर्थ में तो कोई राजनैतिक सन्दर्भों में सही चोट करता है |बधाई
//फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर
आदतन हो गये हो निर्बल क्या//
वाह भाई वाह, सुन्दर शेर कहा है, ग़ज़ल अच्छी लगी, बधाई सिज्जू भाई.
आदरणीय शिज्जू शकूर जी बहुत सुन्दर ...
फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर
आदतन हो गये हो निर्बल क्या......शानदार शब्द संयोजन ,बधाई आपको ! सादर
छटपटाहट सी क्यूँ है चेहरे पर
मच उठी दिल में कोई हलचल क्या
वाह शिज्जु भाई बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बन पड़ी है … हार्दिक बधाई।
शिज्जू भाई
हमेशा की तरह बेहतरीन i
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