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रहनुमा वो कह गया है क्या इशारों में
चारसू उठता धुंआ ही अब नजारों में
धुंध कुछ छाई है ऐसी अब फलक पे यूं
रोशनी मद्दिम सी लगती चाँद तारों में
साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू
छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में
खेलते जो लोग थे तूफाँ में लहरों से
वक़्त ने उनको धकेला है किनारों में
है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब
क्या पता अहबाब ही हों इन कहारों में
हो गयी काफूर अब मुस्कान ओंठों से
हौसला दिखता नहीं अब आबशारों में
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाये.
आखिरी शेर के मिसरा-ए-उला और सानी में रब्त नहीं कर पा रहा कृपया मार्गदर्शन करने की कृपा करें
वाह वाह बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, मैं दो अशआर कोट करना चाहूँगा जो मुझे अत्यधिक पसंद आयें.
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खेलते जो लोग थे तूफाँ में लहरों से
वक़्त ने उनको धकेला है किनारों में
है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब
क्या पता अहबाब ही हों इन कहारों में//
बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष जी.
उत्कृष्ट i बहुत रमणीय , सुंदर i
आदरणीय डॉ आशुतोष जी हार्दिक बधाई ,शानदार ग़ज़ल है ...
खेलते जो लोग थे तूफाँ में लहरों से
वक़्त ने उनको धकेला है किनारों में....बहुत खूब ! सादर
रहनुमा वो कह गया है क्या इशारों में
चारसू उठता धुंआ ही अब नजारों में
धुंध कुछ छाई है ऐसी अब फलक पे यूं
रोशनी मद्दिम सी लगती चाँद तारों में
साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू
छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में
वाह क्या बात है आदरणीय आशुतोष जी .... गज़ब के अशआर पिरोये हैं आपने इस बेहतरीन ग़ज़ल में … हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर।
है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब
क्या पता अहबाब ही हों इन कहारों में
साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू
छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में
वाह खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई वाह
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