For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं अपनी मुहब्बत को …

मैं अपनी मुहब्बत को …एक रचना 


मैं अपनी मुहब्बत को इक मोड़ पे छोड़ आया हूँ
इक ज़रा सी ख़ता पे मैं हर क़सम तोड़ आया हूँ


जाने कितने लम्हे मेरी साँसों की ज़िंदगी थे बने
मैं तमाम ख़्वाब उनकी पलकों में छोड़ आया हूँ


जिसकी मौजूदगी  में खामोशी भी बतियाती थी
अब्र की  चिलमन में वो माहताब छोड़ आया हूँ


बन के  हयात  वो हमसे क्यों बेवफाई .कर गए
उनकी  दहलीज़ पे  मैं  हर  आहट छोड़ आया हूँ


हिज्र का  दर्द  चश्मे  सागर में न सिमट पायेगा
कश्ती कागज़ की  मैं  साहिल  पर छोड़ आया हूँ


हर सलवट से बयां गुज़री रात के अफ़साने होंगे
मैं उनके लबों पे महकते अहसास छोड़ आया हूँ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 695

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2015 at 2:58pm

//हर सिलवट से बयां, गुज़री रात के अफ़साने होंगे 
मैं उनके लबों पे महकते अहसास छोड़ आया हूँ//

वाह वाह क्या कहने आदरणीय, इस सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 11:55am

हर सलवट से बयां गुज़री रात के अफ़साने होंगे
मैं उनके लबों पे महकते अहसास छोड़ आया हूँ                 .................  बहुत खूब कही आदरणीय सुशील भाई , हार्दिक बधाई ।

Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 11:22am

जिसकी मौजूदगी  में खामोशी भी बतियाती थी 
अब्र की  चिलमन में वो माहताब छोड़ आया हूँ

आदरणीय सुशील सरना जी , उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on February 7, 2015 at 6:41am

क्या बात है... सुन्दर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 7, 2015 at 6:01am
मैं अपनी मुहब्बत को इक मोड़ पे छोड़ आया हूँ
इक ज़रा सी ख़ता पे मैं हर क़सम तोड़ आया हूँ
वाह , आदरणीय सुशील सरना जी , बहुत सुन्दर ग़ज़ल बनी है , बधाई , सादर।
Comment by ajay sharma on February 6, 2015 at 10:23pm

हिज्र का  दर्द  चश्मे  सागर में न सिमट पायेगा 
कश्ती कागज़ की  मैं  साहिल  पर छोड़ आया हूँ...........speechless....sir ji ...bahut bahut khoobsoorat sher kaha hai ....wah wah wah 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 8:10pm

वाह! आदरणीय सरना जी, बहुत सुंदर. वैसे मुझे गजल विधा का ज्ञान तो नही किन्तु आपकी रचना गजल के बहुत करीब है. बहुत-बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 7:11pm

हर सिलवट से बयां, गुज़री रात के अफ़साने होंगे 
मैं उनके लबों पे महकते अहसास छोड़ आया हूँ

वाह वाह ... सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service